EngineersDay: आज डॉ. एम. विश्वेश्वरैया की जयंती, कहते थे-‘जब भी बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो जवाब देता हूं कि घर पर नहीं है’
नई दिल्ली: बात उस समय की है जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। एक रेलगाड़ी कई यात्रियों के साथ अपनी मंजिल की ओर लगातार चली जा रही थी। उस रेलगाड़ी के एक कंपार्टमेंट में एक व्यक्ति अचानक उठा और कंपार्टमेंट में लगी जंजीर को खींचा। तेज रफ्तार में दौड़ती रेलगाड़ी धीरे-धीरे रुक गई। सभी यात्री उस व्यक्ति को भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर बाद गार्ड कंपार्टमेंट में आया और पूछा, ‘जंजीर किसने खींची है?’ उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘मैंने खींची है, क्योंकि मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है, मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’
जब उस जगह पर जाकर देखा गया तो सब दंग रह गये। वहां देखा गया तो पता चला कि रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट बिखरे पड़े थे। लोगों ने पुछा कि आप कौन हैं तब उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ॰ मोक्षगुंडम. विश्वेश्वरैया।’ इसी विश्वेश्वरैया जन्मदिन को हम अभियन्ता दिवस के रूप में मनाते हैं।
जन्म और शिक्षा
विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 को मैसूर के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुका में एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान थे और माता का नाम वेंकाचम्मा था। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा चिक्काबल्लापुर से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज जाना पड़ा। इसके बाद मैसूर सरकार ने उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में भेजा। विश्वेश्वरैया ने नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर भी नौकरी की।
बता दें दक्षिण भारत के मैसूर, कर्नाटक को एक समृद्ध और विकसित क्षेत्र बनाने में विश्वेश्वरैया का महत्वपुर्ण योगदान है। उनके प्रमुख प्रोजेक्ट में भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, कृष्णराजसागर बांध हैं।
मैसूर का दीवान नियुक्त किए गए
मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल और पहला फर्स्ट ग्रेड कॉलेज खुलवाने के लिए डॉ विश्वेश्वरैया ने खूब प्रयास किए और उनकी ये मेहनत रंग लाई। सन् 1912 में मैसूर के महाराजा ने विश्वेश्वरैया को मैसूर का दीवान नियुक्त कर दिया। डॉ विश्वेश्वरैया अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी को लेकर चिंतित रहते थे। डॉ विश्वेश्वरैया ने अपने कार्यकाल के दौरान मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दी थी।
101 वर्ष की आयु में निधन
14 अप्रैल 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया। डॉ विश्वेश्वरैया का निधन 101 वर्ष की आयु में हुआ था। भारत सरकार ने विश्वेश्वरैया की 100 साल की आयु में डाक टिकट जारी किया था।
स्वास्थ्य का राज
एक समय में डॉ विश्वेश्वरैया से किसी ने पूछा कि उनके स्वास्थ्य का राज क्या है। जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘जब भी बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं अंदर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। इसके बाद बुढ़ापा निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है’।