BIHAR HOCKEY: मदद के हाथ नहीं बढ़े तो टूट गई उम्मीदों की डोर
हाथ में हॉकी स्टिक और दुनिया जीतने का जुनून। ये हौसला ऐसे ही नहीं आया। वो हाथों के हुनर का कमाल था। स्टिक पकड़ी तो जीत का गोल करते चले गए। पहले सब जूनियर और बाद में नेशनल तक खेला। लेकिन कहते हैं कि मंजिल तक पहुंचने को राहें जरूरी हैं और जब कोई राह ही न हो तो मुसाफिर भटक ही जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ बिहार के हॉकी प्लेयर्स के साथ। सरकार ने मदद के हाथ नहीं बढ़ाए और उम्मीदों की ये डोर टूटती चली गई।
बिहार हॉकी शून्य परः हॉकी प्लेयर राणा
पटना के राणा प्रताप शानदार हॉकी प्लेयर रहे। वह नेशनल भी खेल चुके हैं। वकौल राणा… इस समय बिहार हॉकी शून्य पर है। यह अपने निम्नतम दौर से गुजर रही है। इसके लिए बिहार हॉकी संघ जिम्मेदार है। बिहार में हॉकी के ऐसे प्लेयर हैं, जो देश में पहचान बना सकते हैं। लेकिन सरकार आज तक खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए एक अदद ग्राउंड तक नहीं दे पाई है।
हॉकी प्लेयर क्यों बन गया सिंगर
बिहार में कभी हॉकी का चमकता सितारा रहे दीपक कुमार अब जिंदगी बसर करने को सिंगिग में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वो कहते हैं कि जीवन के स्वर्णिम 16 साल हॉकी को दे दिए। जब संसाधनों का अभाव हुआ और सरकार से मदद की उम्मीद टूट गई तो गायकी में किस्मत आजमाने लगा। लेकिन इस हाल में मैं अकेला नहीं हूं। ऐसे कई हॉकी प्लेयर्स हैं जो प्रोत्साहन और सहयोग के अभाव में प्राइवेट टीचिंग कर रहे हैं या बेरोजगार हैं। अब तो लगता है कि युवाओं को इस खेल में अपना करियर बर्बाद नहीं करना चाहिए।
नहीं मिली प्रैक्टिस की जगह
मैदान को लेकर खिलाड़ियों ने कई आंदोलन किए। उन्होंने खेल संघ से लेकर खेल मंत्री और मुख्यमंत्री तक का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें मुट्ठी भर जगह भी प्रैक्टिस के लिए नहीं दी गई। बिहार हॉकी के सेक्रेटरी मोहम्मद मुस्ताक अहमद एक समय में इंडियन हॉकी के प्रेसिडेंट रह चुके हैं। खिलाड़ियों का आरोप है कि मुस्ताक के कार्यकाल में बिहार में एक भी हॉकी का प्लेग्राउंड नहीं बन पाया। खिलाड़ियों का कहना है कि राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट केवल एस्ट्रो टर्फ पर आयोजित होती है।
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