
जिससे बदली देश की दिशा और दशा
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने वक्त में बेहद ताकतवर नेताओं में गिनी जाती थी। देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में उनके नाम का ढंका बजता था। इंदिरा गांधी का सियासी सफर बड़ा अजीबों-गरीब रहा है। लोग उन्हें सिर्फ देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं जानते, बल्कि उनके द्वारा किए गए राजनीतिक फैसलों ने देश में कई बड़े जो बदलाव हुए उनसे जानी जाती है।
ये भी अजीब है कि उनके पतन की शुरुआत उसी समय हुई जब वो अपने सत्ता के शीर्ष पर थीं। पार्टी और नौकरशाही, उनके पास दो ऐसे हथियार थे जिनकी मदद से वो अपनी सत्ता चलाती थीं। इंदिरा गांधी की गिनती देश की एक बेहद ही प्रभावशाली महिलाओं में होती है और इसलिए दुनियाभर में लोग उन्हें आयरन लेडी कहकर भी पुकारते हैं।
प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा जी लगातार तीन बार आसीन हुई थी। साल 1966 से 1977 तक वह प्रधानमंत्री रही। उसके बाद वह 1980 से लेकर 1984 तक प्रधानमंत्री रहीं और उसी दौरान उनकी हत्या भी कर दी गई। इंदिरा ने प्रधानमंत्री रहते हुए कई ऐसे ऐतिहासिक काम किएं जिससे उन्हें वाह-वाह तो मिली।
वहीं दूसरी तरफ आपातकाल का उनके जीवन पर ऐसा दाग भी है जिसके लिए उन्हें कभी माफ नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो सत्ता हासिल करना एक बात है इसकी ताकत का इस्तेमाल करना दूसरी बात। आइए जानते है कि इंदिरा गांधी के किन बड़े फैसलों ने मचाई थी सियासत में हलचल।
इंदिरा गांधी ने किया 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण
प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी ने कई ऐतिहासिक फैसले लिए थे। जिसमें से एक महत्वपूर्ण फैसला था बैंकों का राष्ट्रीयकरण। 19 जुलाई 1969 को इंदिरा गांधी की सरकार ने अध्यादेश पारित किया और 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। ये वो 14 बैंक थे, जिसमें उस समय देश का 70 फीसद पैसा जमा था।
सरकार ने यह निर्णय इसलिए लिया था ताकी गरीबों तक बैंक सुविधा पहुंचे ,क्योंकि उस समय बैंक केवल पैसे वालों का ही खाता खोलती थी। बताया जाता है कि उस समय तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में नहीं थे। जिसकी वजह से इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई से वित्त मंत्रालय का प्रभार वापस ले लिया था।
बांग्लादेश के निर्माण में अहम सूत्रधार रहा है भारत
भारत से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बनने के 24 साल बाद ही पाकिस्तान में आंतरिक युद्ध छिड़ गया और बांग्लादेश का जन्म हुआ। 1971 में जिसका नाम बांग्लादेश रखा गया। हालांकि यह बात भी सच है कि भारत बांग्लादेश की लड़ाई में शुरू से शामिल नहीं था।

लेकिन पूर्वी पाकिस्तान के इस आंदोलन को भारत वैचारिक तौर पर साथ दे रहा था। पाकिस्तान इसी से बौखलाया गया और 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना की ओर से भारतीय हितों पर हमला किया गया। फिर भारत ने भी पलटवार किया और यही कारण रहा कि भारत औपचारिक तौर पर इस युद्ध में कूद गया। भारत और पाकिस्तान के बीच 13 दिनों तक जंग चली थी। इस जंग में पाकिस्तान को करारी हार मिली और भारत-पाक युद्ध ने दुनिया के नक्शे पर एक और देश को जन्म दे दिया था। कुल मिलाकर कहें तो भारत इस नए मुल्क के निर्माण का सबसे बड़ा सूत्रधार था।
लोकतंत्र की वो काली रात: आपातकाल

आपातकाल के जरिए इंदिरा गांधी जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। 12 जून 1975 के फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इंदिरा ने लोकसभा चुनाव में गलत तौर-तरीके अपनाए। दोषी करार दी गईं इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया गया।
इसको लेकर सत्ता के गलियारों में खलबली मच गई। 47 साल पहले की इमरजेंसी घोर राष्ट्रीय विपदा थी, जिसे इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए लगवाया था। नतीजा क्या हुआ देश के लोकतंत्र पर सबसे बदनुमा दाग लगा। अगले 21 महीने नागरिक अधिकार छीन लिए गए, सत्ता के खिलाफ बोलना अपराध हो गया, विरोधी जेलों में ठूंस दिए गए।
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