
1991 में पीवी नरसिंह राव ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भले ही कांग्रेस के नेता थे पर उदारीकरण में उनकी भूमिका और कांग्रेस से विवादित रिश्तों के चलते वह भारत की दक्षिणपंथी विचारधारा के नायक बने। पीवी नरसिम्हाराव के कार्यकाल में कई घटनाक्रम हुए, लेकिन उनमें से एक बाबरी मस्जिद का विध्वंस ऐतिहासिक घटना थी।
बाबरी मस्जिद को तोड़ने के बाद से ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव को कटघरे में खड़ा दिया था। कई लोगों के सवाल थे कि आखिरकार 6 दिसंबर, 1992 के दिन प्रधानमंत्री क्या कर रहे थे, किससे-किससे बात किए। उस दिन क्यों नरसिम्हा राव सुबह 7 बजे सोकर क्यो उठे, आमतौर से वो इससे पहले उठ जाते थे। कुछ पत्रकारों ने भी किताबें में इस मुद्दे पर अपनी बातें रखी है।
बाबरी मस्जिद गिराते समय राव पूजा कर रहे थे
एक पुस्तक के माध्यम से पीवी नरसिम्हा राव पर आरोप लगा है कि जिस समय बाबरी मस्जिद गिराई उस समय इस मुददे पर राव की मौन सहमति थी। जाने माने वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘बियांड दि लाइंस’ में 6 दिसंबर 1992 की इस घटना का जिक्र किया है।उसमें दावा किया गया है कि जब कारसेवकों ने मस्जिद को गिराना शुरू किया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पूजा पर बैठे और वह मस्जिद के पूरी तरह से गिर जाने के बाद ही अपनी पूजा को समाप्त कर पूजा से उठे थे।
नैयर ने लिखा है कि मस्जिद गिराए जाने के बाद जब दंगे भड़क गए तो राव ने कुछ वरिष्ठ पत्रकारों को अपने घर पर बुलाया था। वह दुखी मन से बता रहे थे कि किस प्रकार उनकी सरकार ने मस्जिद को बचाने के लिए हर प्रयास किया, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विश्वासघात किया।
लेकिन दिवंगत नरसिम्हा राव के पुत्र पीपी रंगा राव ने इस दावे को पूरी तरह से खारिज करते हुए इसे अविश्वसनीय और अपुष्ट करार दिया। उन्होंने कहा नैयर जैसे पत्रकार र्सिफ निहित स्वार्थ के कारण उनके पिता के खिलाफ विषवमन कर रहे हैं , जबकि वह अपना बचाव करने के लिए जीवित नहीं हैं।
मंत्रिमंडल की बैठक में राव की चुप्पी
ऐसे ही कई आरोप और बयान सामने आए थे। जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री चाहते तो इस घटना को रोक सकते थे। वहीं अर्जुन सिंह अपनी आत्मकथा ‘ए ग्रेन ऑफ सैंड इन द आर ग्लास ऑफ टाइम’ में लिखते हैं, राव ने अपने निवास स्थान पर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई।
उस बैठक में नरसिम्हा राव इतने चौके हुए थे कि उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला। सबकी निगाहें फिर जाफर शरीफ की तरफ मुड़ गईं, मानों उन से कह रही हों कि आप ही कुछ कहिए। जाफर शरीफ ने कहा इस घटना की देश, सरकार और कांग्रेस पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन राव अपने मुंह से एक शब्द न बोले।
फोतेदार ने लिखा था, राव ने कुछ नहीं किया
उस समय के केंद्रीय मंत्री माखनलाल फोतेदार अपनी आत्मकथा ‘द चिनार लीव्स’ में लिखते हैं, कि जब बाबरी मस्जिद तोड़ी जा रही थी, तो उस समय के उन्होंने नरसिम्हा राव को फोन कर तुरंत कुछ करने का अनुरोध किया था। उन्होंने राव साहब कम से कम एक गुंबद तो बचा लीजिए। ताकि बाद में हम उसे एक शीशे के केबिन में रख सकें और भारत के लोगों को बता सकें कि बाबरी मस्जिद को बचाने की हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। प्रधानमंत्री चुप रहे और लंबे ठहराव के बाद बोले, फ़ोतेदारजी मैं आपको दोबारा फोन करता हूं।”
फोतेदार ने ये भी ज़िक्र किया था कि मस्जिद ढहाए जाने की घटना के बाद राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा भी रोए थे। उन्होंने कहा इस घटना के लिए राव सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं, चाहते तो वो रोक सकते थे।
राव के मंत्रिमंडल के सदस्य उनका पतन चाहते थे
लेकिन नरसिम्हा राव पर बहुचर्चित किताब ‘हाफ लायन’ लिखने वाले विनय सीतापति इस मामले में नरसिम्हा राव को क्लीन चिट देते हैं। सीतापति कहते हैं, “नवंबर 1992 में दो विध्वंसों की योजना बनाई गई थी- एक थी बाबरी मस्जिद की और दूसरी खुद नरसिम्हा राव की। संघ परिवार बाबरी मस्जिद गिराना चाह रहा था और कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वी नरसिम्हा राव को।
खैर कोई कहता है कि ये घटना राव के ‘राजनीतिक मिसकैलकुलेशन’ का नतीजा थी, तो किसी का मानना है कि ये राव और उनकी सरकार की बड़ी असफलता थी। किसी का मानना है कि राव पर भाजपा के साथ सांठ-गांठ की थ्योरी कांग्रेस ने राव को साइडलाइन करने के लिए ईजाद की तो किसी का मानना है कि राव हिंदू भावना के समर्थक थे। अब ऐसे में आप खुद तय कर सकते हैं कि वास्तविकता क्या रही होगी।