प्रधानमंत्री सीरीज़:आरक्षण की आग लगाने वाले प्रधानमंत्री की कहानी

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वीपी सिंह आरक्षण की आग लगाने वाले ऐसे नेता रहे जिससे हिंदुस्तान जाति के आधार पर दो स्पष्ट खेमों में बंट गया था।

आरक्षण की आग लगाने
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अस्सी के दशक के आखिरी सालों में ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’ नारे के साथ लोग विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) देश के आठवें प्रधानमंत्री बने थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह कई कारणों से याद किए जाते हैं। ये वो नेता थे हिन्दुस्तान की सियासत का नक्शा हमेशा-हमेशा के लिए बदल दिया था। ये आरक्षण की आग लगाने वाले ऐसे नेता रहे जिससे हिंदुस्तान जाति के आधार पर दो स्पष्ट खेमों में बंट गया था।

उस समय वीपी सिंह ने सबको चौंकाते हुए सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण की मंडल आयोग की सिफारिश लागू कर दी। आंदोलन से कहीं ज्यादा सामाजिक कड़वाहट का दौर भी यहीं से शुरू हुआ। एक ओर जहां वीपी सिंह पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों में उनका हक दिलाकर पिछड़ों के महीसा बन गए। तो दूसरी ओर समाज का सवर्ण वर्ग अपना हक मारे जाने से गुस्से में था तब वो सवर्ण समुदाय की नजर में राजा से ‘देश का कलंक’ में तब्दील हो गए।

राजनैतिक जीवन का दूसरा दौर

1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने की घटना ने आजादी के बाद की राजनीति को दो हिस्सों में बांट दिया। एक मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने से पहले की राजनीति और राजनैतिक जीवन का दूसरा दौर मंडल कमीशन लागू होने के बाद। जिसे भारतीय सामाजिक इतिहास में ‘वाटरशेड मोमेंट’ कहा जा सकता है। अंग्रेजी के इस शब्द का मतलब है- वह क्षण जहां से कोई बड़ा परिवर्तन शुरू होता है। कह सकते है सत्ता से निकलकर सियासी तिकड़मों का आंदोलन भी इसी दौर में देखा गया। आज आपको 32 साल पुराने उसी आंदोलन की पूरा कहानी बताएंगे।

कैसे हुई मंडल आयोग की शुरुआत

भारतीय राजनीति में पिछड़ों के लिए दरवाजे खोलने की शुरुआत मोरारजी देसाई सरकार के समय में हुई थी। सन 20 दिसंबर 1978 में सामाजिक शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की समीक्षा के लिए मोरारजी देसाई सरकार ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की। यह मंडल आयोग के नाम से चर्चित हुआ।

मंडल आयोग ने सरकारी नौकरियों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछडे़ वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की। अनुसूचित जाति-जनजाति को पहले से ही 22.5 प्रतिशत आरक्षण हासिल था। मतलब, अगर यह सिफारिश मान ली गई, तो देश में लगभग 49.5 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित वर्ग के कोटे में चली जानी थीं। 

1 जनवरी 1978 आयोग के गठन की अधिसूचना जारी हुई। फिर दिसंबर 1980 मंडल आयोग ने गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह की रिपोर्ट सौंपी। लेकिन उस समय तक मोरारजी देसाई की सत्ता जा चुकी थी। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो चुकी थी। मंडल कमीशन ने सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को 27 फीसदी आरक्षण की सत्ता से बाहर होने के बाद सिफारिश की थी। लेकिन उन्होंने भी कमीशन की सिफारिशें लागू नहीं की। 

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला। लेकिन उन्होंने भी कमीशन की सिफारिशें लागू नहीं की। साल 1989 में देश आम चुनाव हुआ। उस चुनाव में राजीव गांधी को करारी हार का सामना करना पड़ा। क्योंकि उस समय बोफोर्स घोटाले हुआ था। मामला बोफोर्स तोप की खरीद में कमीशन खाने का था राजीव गांधी का दामन दागदार हुआ था। इस मामले में आरोप लगाने वाला शख्स देश का रक्षा मंत्री वीपी सिंह थे।

वीपी सिंह ने राजीव को मात दी

वीपी सिंह बोफोर्स घोटाला का विरोध करते हुए कांग्रेस के भी विरोधी हो गए। उन्होंने जनता दल नाम की खुद की एक पार्टी बना ली। इस मुद्दे का उन्हें और उनकी पार्टी को बहुत फायदा मिला और चुनाव में उनकी पार्टी को 144 सीटें मिली। इसके बाद जनता दल, वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनाने का फैसला हुआ और वे  प्रधानमंत्री पद के लिए गए। जिसके बाद 2 दिसंबर 1989 से शुरू हुआ वीपी सिंह का राज।

भारत बंटा चार वर्गों में

7 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की घोषणा करी।13 अगस्त, 1990 को वी पी सिंह की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने इसे लागू करने की अधिसूचना जारी की। जिसके बाद पी सिंह को प्रधानमंत्री बने अभी केवल 8 महीने ही बीते थे और 8 महीने के अंदर देश की सड़कें छात्रों के खून से लाल हो रही थीं। ये आंदोलन इतना उग्र हो गया कि देश के चारों ओर आरक्षण की आग फैलने लगी।

आरक्षण की आग लगाने वाले ऐसे नेता के विरोध में दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश समेत हर कोने से स्टूडेंट्स के आत्मदाह करने, या कोशिश करने की खबरें आने लगीं। यानी पहले से बेरोजगारी और सिस्टम की खामियों से जूझ रहे नौजवानों के गुस्से में आरक्षण की नई नीति ने आग में घी डालने का काम किया। बता दें इस रिपोर्ट को लागू करने के बाद पूरा भारत चार वर्गों में बंट गया। एससी/एसटी पहले से थे। मंडल के बाद ओबीसी और जनरल भी विभाजन के पैमाना बन गए।

आरक्षण बना वोट बैंक का ब्रह्मास्त्र

वहीं मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह और उप प्रधानमंत्री देवीलाल में मतभेद पैदा हो गए। मतभेद इतने बढ़े कि उप-प्रधानमंत्री देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन कई नेता ये भी जान गए थे की आरक्षण का तीर उनके लिए वोट बैंक का ब्रह्मास्त्र हो जाएगा।  मंडल कमीशन से उपजी आरक्षण नीति का सबसे ज्यादा असर उत्तर भारत पर पड़ा।

कांग्रेस पार्टी भी आरक्षण की आग लगाने वाले वीपी सरकार के फैसले की पुरजोर विरोध किया और राजीव गांधी मणिशंकर अय्यर द्वारा तैयार प्रस्ताव लेकर आए, जिसमें मंडल कमीशन की रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज किया गया। नवंबर आते-आते बीजेपी ने वीपी सिंह की नेशनल फ्रंट की सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। वीपी सिंह ने 7 नवंबर 1990 को पीएम पद से इस्तीफा दे दिया।

अब ऐसे में प्रश्न ये उठता है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट को अचानक लागू कराने के पीछे वीपी सिंह का क्या मकसद था। क्या वो पीछड़े समाज को बराबरी लाना चाहते थे या फिर ये वीपी सिंह की सिय़ासी मजबूरी थी।

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