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यूपी का राजनीतिक भाषा विज्ञान !

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डिजिटल युग में हम जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, उतनी ही तेजी से नए शब्दों की आमद हो रही है. मौजूदा राजनीति पर नजर डालकर देखिए, इसका साफ पता चलता हैं. इस समय देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है और कई चरणों में जनता जनार्दन अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुकी है. इस चुनावी समर में नए शब्दों की बाढ़ सी आ गई है. हर दिन सियासी दलों के वार पलटवार के दौर में नए शब्द सुनने और पढ़ने को मिलते हैं.

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यूपी में लाल टोपी, भगवा, भगवा आतंकी, गर्मी निकाल दूंगा, चर्बी कम कर देंगे, हिन्दूगर्दी, दंगेश, मैं भगवाधारी, परिवारवादी, चिलमजीवी, इलाज कर देंगे, भूस भर देंगे, तमंचावादी पार्टी, बुलडोजर सरकार, UPYOGI, लाल टोपी खतरे की घंटी, नया लिफाफा, गुंडागर्दी, टोंटीचोर …!

भगवा और भगवा आतंकी जैसे शब्दों ने खींचा लोगों का ध्यान

यूपी के इस चुनावी समर में प्रयोग किए गए ये सभी शब्द एक आम नागरिक को आकर्षित करते हैं. भगवा और ‘भगवा आतंकी’ और बुलडोजर सरकार शब्द का प्रयोग विपक्ष ने सीएम योगी को लक्षित करते हुए किया है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के लिए चिलमजीवी शब्द का प्रयोग करके तीखे व्यंग्य के बाण चलाए. किसान आंदोलन के दौरान आंदोलनजीवी शब्द ईजाद हुआ था. अब यूपी चुनाव में चिलमजीवी का प्रयोग किया गया. जिसका सबसे अधिक प्रयोग साधु संतों के लिए किया जाता है. हालांकि इस शब्द का प्रयोग व्यंगात्मक रूप में किया गया है.

हिन्दूगर्दी जैसा नया शब्द हुआ ईजाद

अगर चुनाव में थोड़ा पहले जाया जाए तो, वें शब्द भी प्रयोग किए गए हैं जो हिंसक है और शिकायत के बाद नेताओं पर कितनी कार्रवाई हुई है, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. इसी कड़ी में एक नए शब्द का और जन्म हुआ. ‘हिन्दूगर्दी’. बिल्कुल नया टर्म है. जिसे दिया मेरठ से सपा विधायक रफीक अंसारी ने. विधायक जी का कहना था कि प्रदेश में बाबा ने हिन्दूगर्दी मचाई है, अगर प्रदेश में सपा की सरकार बनी तो मेरठ में हिन्दूगर्दी नहीं चलेगी.

एक विशेष समुदाय को आकर्षित करने के लिए इस्तेमाल किए गए कुछ शब्द

गौरतलब है कि, विपक्षी दलों ने इन शब्दों का सोच समझकर प्रयोग किया है. चूंकि, उपरोक्त शब्दों को अगर गौर से देखा जाए तो विपक्ष एक विशेष समुदाय को आकर्षित करने की कोशिश करता दिख रहा है. जिससे विपक्ष को चुनाव में ज्यादा लाभ मिल सके. विपक्ष के सियासी शब्द एक अलग ही अहसास दिलाते है. सपा, बसपा और कांग्रेस उतरोत्तर बीजेपी को नित ऐसे ही शब्दों से घेर रही है. ऐसा लगता है कि चुनाव प्रचार में बीजेपी के खिलाफ ऐसे शब्दों का प्रयोग प्रिविलेज सा हो गया है. जब बीजेपी विपक्ष को घेरती है तो विपक्ष के सभी दावों को सिर के बल उल्टा खड़ा कर देती है.

तमंचावादी, दंगेश जैसे टर्म्स ने तेजी से किया ध्यान आकर्षित

बीजेपी लाल टोपी, परिवारवादी, तमंचावादी, दंगेश, नया लिफाफा माल पुराना, गुंडागर्दी आदि सरीखे शब्दों का प्रयोग कर रही है. बीजेपी ने इन शब्दों का प्रयोग सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को लक्षित करते हुए किया है. अगर गौर से देखा जाए तो इस वार पलटवार के दौर में सपा और बीजेपी ने ही ज्यादा एक दूसरे पर अक्रामक तेवर दिखाएं है.   

हां मैं भगवाधारी हूं से बही भावनात्मक बयार

अब तक हुए पांच चरणों में बीजेपी ने सपा को परिवारवाद, आतंकवाद, गुंडागर्दी, दंगेश, लाल टोपी खतरे की घंटी, गर्मी शांत कर देंगे इत्यादि शब्दों से घेरा है. अखिलेश और योगी आदित्यनाथ ही नहीं, 1 मार्च को पूर्व सांसद डिंपल यादव भी सीएम योगी को निशाने पर लेने से नहीं चूकी. डिंपल यादव ने भगवा को लेकर सीएम पर छिंटाकशी कर दी. जिसके बाद पूर्वांचल में बीजेपी की भावनात्मक बयार बहने लगी. हां मैं भगवाधारी हूं. 

चुनाव का नया राजनीतिक भाषा विज्ञान

यूपी के विधानसभा चुनाव 2022 में नए-नए शब्दों की बाढ़ सी आ गई. नित नए शब्दों की आमद से लगता है, कि यूपी में नया विज्ञान आया है, जिसका नाम राजनीतिक भाषा विज्ञान रख देना देना चाहिए. हालांकि, गिरता भाषा का स्तर और मर्यादा खोती राजनीति और नेताओं का धर्म जाति के रंगों से चुनाव लड़ना जरूर एक विचारणीय और गहन पहलू हैं. उपरोक्त घटनाक्रम से सहज ये अनुमान लगाया जा सकता है कि देश की राजनीति किस दिशा और दशा में आगे बढ़ रही है.

चुनाव में नेताओं की भाषा ऐसी जैसे हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र

चुनाव में नेताओं की भाषा देखने के बाद ऐसा लगता है. जैसे- हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र. जो बुरा सुनने के लिए शापित थे. किसी भी पार्टी के नेताओं की बयानबाजी यह आश्वस्ति नहीं देती कि वह मर्यादा के दायरे में रहकर की जा रही है. हर कोई प्रदेश में विकास का देवदूत बनना चाहता है. एक कहावत है, अति का भला ना बोलना, अति की भली ना चूक. यूपी में यह कहावत नेताओं पर कितना चरित्रार्थ हो पाती है. यह देखने वाली बात होगी.

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