
Bangladeshi Golden Chicken Smuggling:
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में इंग्लिश बाजार से तस्करी का एक आश्चर्यजनक मामला सामने आया है। Bangladeshi Golden Chicken Smuggling: मामला दरअसल यह है कि भारत में अवैध रूप से बांग्लादेश से गोल्डन मुर्गों की भारत में तस्करी हो रही है। पश्चिम बंगाल के कई जिलों में इन मुर्गों को देशी मुर्गा कहा जाता है। यही नहीं, झारखंड और बिहार में भी इन गोल्डन मुर्गों की मांग है। इसका एकमात्र कारण कीमत है: देशी मुर्गों की कीमत काफी ज्यादा है, लेकिन बांग्लादेशी गोल्डन मुर्गों की कीमत उसकी तुलना में काफी सस्ती है, जिससे विक्रेता काफी फायदा उठाते हैं।
25 से 30 रुपए में मिलते हैं गोल्डन मुर्गें
सूत्रों की अगर माने तो मालदा जिले के कुछ तस्कर बांग्लादेश से 25 से 30 रुपए जोड़े के भाव से गोल्डन मुर्गें खरीद कर भारत लाते हैं और इन मुर्गों को मार्केट में बेच देते हैं। इसके अलावा इनमें से कई तस्कर चोरी छिपे इलाकों में अवैध रूप से इन मुर्गों फार्मिंग भी कर रहे हैं।
कैसे होते हैं गोल्डन मुर्गे?
बांग्लादेश के ये गोल्डन मुर्गे भारत के पोल्ट्री मुर्गों के तरह ही होते हैं। इन मुर्गों को तैयार करने में काफी कम समय लगता है, जिसकी वजह इनकी मांस और हड्डियां काफी मुलायम होती हैं। अगर भारत के देसी मुर्गों की बात करें तो भारत के देशी मुर्गे खुले में रहते हैं और उनको बड़ा होने में काफी समय लगता है। इसलिए उनका मांस और हड्डियां थोड़ी सख्त होती है। देशी मुर्गे का चिकन खाने पर स्वाद भी मिलता है। वहीं, बांग्लादेश के गोल्डन मुर्गों में वह स्वाद नहीं पाया जाता। भारत के पोल्ट्री मुर्गों की तुलना में उसका स्वाद काफी फीका लगता है।
उठे सवाल
ऐसे में अब सवाल उठता है कि जब भारत में पोल्ट्री मुर्गों की फार्मिंग होती है तो बांगलादेशी गोल्डन मुर्गों की अवैध फार्मिंग कैसे हो सकती है? इसके अलावा बांग्लादेश से गोल्डन मुर्गों की तस्करी पर रोक क्यों नहीं लगाई जा रही है?
वन्यजीव विभाग ने फैलाई जागरुकता
हालांकि, इस मामले में मालदा के वन्यजीव विकास विभाग लोगों को जागरूक कर रहा है। विभाग ने बाजार में बिक रहे देशी मुर्गों के नाम पर बांग्लादेशी गोल्डन मुर्गों की पहचान करने के लिए कुछ टिप्स बताए हैं। जिसकी जांच के बाद आप चिकन की खरीद सकते हैं। विभाग का कहना है कि गोल्डन मुर्गों की तस्करी रोकने का काम BSF है। वहीं, इलाके में अवैध रूप से गोल्डन मुर्गों फार्मिंग पर छापेमारी करना पुलिस का काम है। विभाग ने यह भी कहा कि जब BSF इन तस्करों पर काबू नहीं पा रही और पुलिस इसकी फार्मिंग को नहीं रोक पा रही है तो आम लोग कैसे मुर्गों की पहचान करें कि कौन सा मुर्गा बांग्लादेशी है या कौन का मुर्गा देसी है।