जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव : दस साल बाद कितना कुछ बदला… जानें

Assembly Election

प्रतीकात्मक चित्र

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Assembly Election : जम्मू में विधानसभा चुनाव होने के आसार है. आज यानि शुक्रवार दोपहर भारतीय चुनाव आयोग एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा. माना जा रहा है कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनाव के संबंध में घोषणा की जा सकती है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऑर्डर में 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधान सभा चुनाव कराने को कहा था.

2014 के बाद से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं हुए

2014 के बाद से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं. 2019 में देश की केंद्र सरकार ने यहां से आर्टिकल 370 को समाप्त कर दिया था. इसके बाद से कश्मीर के लोगों में इसके प्रति नाराजगी थी तो वहीं केंद्र सरकार ने इसे पूरे देश में अपनी एक उपलब्धि बताया था. आगामी चुनाव में जनता को काफी कुछ बदलाव देखने को मिलेगा. मसलन यहां की विधानसभा की सीटों की संख्या में परिवर्तन किया गया है तो वहीं राज्य सरकार जिसके पास पहले समस्त अधिकार थे उसके अधिकारों में भी कटौती गई है.

जम्मू में अब 37 की जगह 43 विधानसभा सीटें

बात अगर जम्मू की करें तो पहले इस क्षेत्र में 37 विधानसभा सीटें थीं जिन्हें बढ़ाकर अब 43 किया गया है. वहीं दूसरी ओर कश्मीर में भी एक विधानसभा सीट बढ़ाई गई है. यहां सीटों की संख्या पर 46 की जगह 47 कर दी गई है. पूर्व की भांति पाक अधिकृत कश्मीर में 24 विधानसभा सीटें ही रहेंगी. लेकिन यहां चुनाव संभव नहीं है. वहीं पहले लद्दाख में चार विधानसभा सीटें थीं जो कि अब केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है. इस तरह अब कुल 114 सीटें जम्मू-कश्मीर विधानसभा में होंगी. इनमे से 90 सीटों पर चुनाव संपन्न करवाया जाएगा.

कश्मीर में चुनाव नहीं लड़ेगी बीजेपी

जम्मू एक हिंदू बाहुल्य इलाका है तो कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य. बीजेपी इस बार जम्मू में चुनाव लड़ेगी लेकिन वह कश्मीर में चुनाव नहीं लड़ेगी. वर्तमान में भी जम्मू क्षेत्र की दो लोकसभा सीटों से बीजेपी के सांसदों ने ही जीत हासिल की है. ऐसे में अगर जम्मू में बीजेपी का बेहतर प्रदर्शन रहता है तो वह यहां सरकार बनाने में एक अहम भूमिका निभा सकती है.

कश्मीरी पंडितों के लिए दो विधानसभा सीटें रिजर्व

दूसरी ओर इस बार चुनाव में कश्मीरी पंडितों के लिए, जिन्हें कश्मीरी प्रवासी कहा गया है, दो विधानसभा सीटें रिजर्व रहेंगी. वहीं एक सीट पीओके से विस्थापित व्यक्ति के लिए रिजर्व है. इस तरह उपराज्यपाल अब तीन सीटों पर सदस्यों को नामित कर सकेंगे. इनमें से एक महिला होगी.

नियमानुसार 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन करने वाले जिस शख्स का नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर हो उसे कश्मीरी प्रवासी माना जाएगा. दूसरी ओर जो व्यक्ति 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओके से आया हो उसे विस्थापित माना जाएगा. इस तरह से जम्मू-कश्मीर में कुल 93 विधानसभा सीटें होंगी.

पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर उपराज्यपाल का अधिकार

वहीं पहले राज्य सरकार के पास सारी शक्तियां हुआ करती थीं लेकिन अब पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर उपराज्यपाल का अधिकार होगा वहीं अन्य मामलों में राज्य सरकार फैसला लेगी लेकिन उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी.

कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाएगा जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और उसका नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर हो. वहीं, जो भी व्यक्ति 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओके से आया होगा, उसे विस्थापित माना जाएगा.

‘इस बार हम सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ेंगे’

इस मुद्दे पर भाजपा नेता कविंदर गुप्ता ने कहा, “आज अगर चुनाव आयोग की तरफ से चुनाव की तिथियों की घोषणा की जाती है तो यह स्वागत योग्य कदम है…इस बार हम सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ेंगे तो कश्मीर में भी हमें अच्छी बढ़त मिले, इसके लिए हमारी कोशिश रहेगी…”

उमर अब्दुल्ला ने कही यह बात

उमर अब्दुल्ला ने कहा, “हम यह निश्चित रूप से नहीं जानते हैं लेकिन हमें उम्मीद है कि वे जम्मू-कश्मीर के लिए तारीखों की घोषणा करें। लेकिन पहले भी हमें किसी घोषणा की उम्मीद थी और कोई घोषणा नहीं हुई। जम्मू-कश्मीर 2018 से निर्वाचित विधानसभा के बिना है। यह शायद जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार के बिना सबसे लंबी अवधि है इसलिए हमें उम्मीद है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जो कहा है, उसे ध्यान में रखते हुए ईसीआई आज के अवसर का उपयोग जम्मू-कश्मीर में शीघ्र चुनावों की घोषणा करने के लिए करेगा क्योंकि यह उनके दिशानिर्देशों के अनुसार है.

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