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सनातन धर्म रक्षा बोर्ड के गठन की याचिका रद्द, नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार हमारे पास नहीं

Sanatan Dharm Board: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सनातन धर्म रक्षा बोर्ड के गठन की मांग को लेकर दायर याचिका खारिज कर दी है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अदालत नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं रखती। याचिका में सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए विशेष बोर्ड के गठन की मांग की गई थी, लेकिन न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इसे सरकार और संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला बताया।

याचिकाकर्ता, सनातन हिंदू सेवा संग ट्रस्ट ने तर्क दिया कि सनातन धर्म के अधिकारों और परंपराओं की रक्षा के लिए कोई संगठन नहीं है, इसलिए एक विशेष बोर्ड की आवश्यकता है। न्यायालय ने इसे स्वीकार करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को सरकार से संपर्क करने की सलाह दी। अदालत ने कहा, “हम नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। यह मुद्दा सांसदों के माध्यम से संसद में उठाया जाना चाहिए।”

नीति और संपत्ति

इस विषय पर हाल ही में दिल्ली में एक सनातन धर्म संसद का आयोजन किया गया था, जिसमें सनातन धर्म बोर्ड की मांग को प्रमुखता दी गई। इस धर्म संसद का नेतृत्व प्रसिद्ध कथावाचक और सनातन न्यास बोर्ड के अध्यक्ष देवकीनंदन ठाकुर ने किया। इसमें देशभर के बड़े आचार्यों, साधु-संतों, धर्माचार्यों, धर्म गुरुओं और कथावाचकों ने भाग लिया। धर्म संसद में सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए एक बोर्ड के गठन की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

इसी क्रम में धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने भी बोर्ड की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि समाज में सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए अलग नियम बनाए जाने चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों के पास नीति और संपत्ति को लेकर विशेषाधिकार हैं, जिससे संतुलन बिगड़ रहा है।

दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय नीतिगत मामलों पर न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं को रेखांकित करता है। अब यह देखना होगा कि यह मुद्दा सरकार या संसद के स्तर पर कितना प्रभाव डालता है।

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