
21 सितंबर को लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के सांसद दानिश अली पर भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी ने अशोभनीय टिप्पणी की थी, जिसका परिणामस्वरूप काफी हंगामा हो रहा है। विपक्ष एकजुट है और बिधूड़ी पर कार्रवाई की मांग कर रहा है। इसके बीच भाजपा की तरफ से दानिश अली पर आरोप लगाए जा रहे हैं। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने स्पीकर को पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि दानिश ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अशोभनीय शब्दों का उपयोग किया था।
रमेश बिधूड़ी को सुनकर दानिश अली ने उनके आरोपों का पलटवार किया और कहा कि वह इस तरह की भाषा का उपयोग नहीं करेंगे, खासतर प्रधानमंत्री के खिलाफ। उन्होंने भाजपा-आएसएस के तरीकों का भी उल्लंघन किया और कहा कि वे झूठ बोलने की त्रैनिंग देते हैं, और एक झूठ को बार-बार बोलकर उसे सच मान लेते हैं।
जानिए संसद के अंदर क्या है ऐसी भाषा के लिए नियम?
बीजेपी सांसद की आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद विपक्षी पार्टियों ने जमकर विरोध किया. जिसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खेद भी जताया था. क्या आपको पता है संसद के अंदर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने पर क्या कानून है? संविधान के आर्टिकल 105 (2) के तहत संसद में कही गई किसी बात के लिए कोई सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है.
इसका मतबल यह है कि सदन में कही गई किसी भी बात को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है। एक सांसद सदन में कुछ भी कहता है वो लोकसभा में प्रोसिजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के रूल 380 के तहत स्पीकर के कंट्रोल में होता है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई भी सांसद संसद भवन के अंदर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करता है तो उस पर स्पीकर को ही एक्शन लेने का अधिकार है।
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