“कानून के मुताबिक है Anand Mohan की रिहाई”-बिहार के मुख्य सचिव

आनंद मोहन सिंह की रिहाई पर विवाद के बीच, गुरुवार को बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुभानी का आधिकारिक बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि यह कदम कानून के मुताबिक है और राज्य सरकार ने जेल नियमावली 2012 में संशोधन कर कुछ भी गलत नहीं किया है। “बिहार स्टेट सेंटेंस रिमिशन काउंसिल ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों पर निर्णय लिया है। हमने रिहाई आदेश पारित करने से पहले सभी दिशानिर्देशों का पालन किया है। आनंद मोहन एक राजनेता हैं और उनके मामले से संबंधित बहुत सारी बातें चल रही हैं। उन्होंने 15 साल से ज्यादा की सजा और 7 साल जेल की सजा काट ली है। इसलिए वो 22 वर्ष से अधिक समय तक जेल में रह चुके हैं। इसलिए उनके मामले में लिया गया निर्णय कानून के अनुसार है।” उन्होंने कहा।
“ऐसे मामले में जहां अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा दी गई है, राज्य सरकार ने 14 साल की जेल और 20 साल की सजा पर विचार किया है। हमने पिछले 6 वर्षों में छूट परिषद की 22 बैठकें की हैं और 1,161 कैदियों की रिहाई पर चर्चा की है। राज्य सरकार ने 698 कैदियों को रिहा करने का फैसला लिया है।” सुभानी ने कहा।
आनंद मोहन पर बवाल क्यों?
मुजफ्फरपुर में 5 दिसंबर, 1994 को हुई गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या में पटना उच्च न्यायालय ने आनंद मोहन को दोषी ठहराया था। मुजफ्फरपुर पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, आनंद मोहन मुजफ्फरपुर में अंडरवर्ल्ड डॉन छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार का नेतृत्व कर रहे थे। उसी समय कृष्णैया सरकारी कार से पटना से वापस अपने जिले की ओर जा रहे थे। तभी छोटन शुक्ला के समर्थकों ने उसकी मौत पर प्रदर्शन किया। डीएम को कार से बाहर घसीटा गया और पीट-पीटकर मार डाला। इसी मामले में आनंद मोहन को गिरफ्तार किया गया।