
कहते हैं केन्द्र की राजनीति का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है। ऐसे मेंं उत्तर प्रदेश के नेताओं का जब भी जिक्र आता है। इन्हीं में से एक नाम है रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया। प्रतापगढ़ जिले में एकमात्र बाहुबली। कहावत है कि जहां से कुंडा की सीमा शुरू होती है, वहां से राज्य सरकार की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां सबकुछ राजा भैया की मर्जी से होता है।
देश में बेशक राजे-रजवाड़े और रियासतें खत्म हुए सालों बीत चुके हों लेकिन उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ की जनता आज भी कुंवर रघुराज प्रताप सिंह अपना राजा मानकर पूजती है। सियासत के इस बाहुबली ने राजनीति में अपना जबरदस्त सिक्का जमाया। इलाके में सिर्फ और सिर्फ रघुराज प्रताप सिंह और उनके परिवार की हुकुमत चलती है।
अपनी दबंगई से उत्तरप्रदेश की राजनीति में अपनी एक खास जगह बनाने वाले रघुराज प्रताप सिंह का विवादों से चोली-दामन का साथ रहा। राजा भैया की पहचान एक बाहुबली नेता की है। राजा भैया के पिता भी प्रतापगढ़ की भदरी रियासत के उत्तराधिकारी थे, यानी रघुराज प्रताप सिंह चांदी की चम्मच लेकर ही पैदा हुए और दबंगई उनके खून में रही।
प्रतापगढ़ की भदरी रियासत में 31 अक्टूबर 1967 में जन्में रघुराज प्रताप सिंह को लोग राजा भैया के नाम से जानते हैं। राजा भैया की पढ़ाई- लिखाई इलाहाबाद से हुई। सबसे पहले नारायणी आश्रम के महाप्रभु स्कूल में उन्होंने दाखिला लिया। वैसे तो राजा भैया के पिता उदय प्रताप सिंह का मानना था कि अगर उनका बेटा पढ़-लिख जाएगा तो उसके अंदर से राजाओं वाली ठसक खत्म हो जाएगी।
हालांकि राजा भैया की मां को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने पति को बिना बताए राजा भैया का दाखिला इलाहाबाद के एक स्कूल में करा दिया। बाद में इलाहाबाद के ही स्काउट एंड गाईड स्कूल से उन्होंने आगे की पढ़ाई की। लखनऊ यूनिवर्सिटी से राजा भैया ने ग्रेजुएशन किया।
1993 में निर्दलीय विधायक चुने गए थे राजा भैया
रघुराज प्रताप सिंह का जन्म प्रतापगढ़ के कुंडा में हुआ था। इसी क्षेत्र से वो पहली बार 1993 में निर्दलीय विधायक चुने गए। उससे पहले कुंडा विधानसभा कांग्रेस के कब्जे में थी। राजा भैया ने पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कुंडा विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी, जिसके बाद यह सिलसिला जारी है। राजा भैया अपने परिवार के पहले सदस्य हैं, जिन्होंने सियासी दुनिया को चुना।
वैसे तो समय-समय पर रघुराज प्रताप सिंह ने कई राजनीतिक पार्टियों से हाथ मिलाया, जिसमें भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी शामिल है। पहली बार कल्याण सिंह सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। उसके बाद एक बार फिर बीजेपी सरकार में 1999 में वो खेल-कूद और युवा कल्याण मंत्री बने। इसी दौरान वो राजनाथ सिंह के बेहद करीब आए और आज भी उन्हें राजनाथ सिंह का खास माना जाता है।
रघुराज प्रताप सिंह का राजनीतिक करियर
2004 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी रघुराज प्रताप यानी राजा भैया समाजवादी पार्टी से मिल गए और उन्हें खाद्य और रसद मंत्री भी बनाया गया। ये दौर था जब इनका कद बढ़ता ही जा रहा था। उत्तरप्रदेश में उनकी दबंगई के जलवे थे। एक तरफ वो अपनी सियासी ताकत बढ़ा रहे थे। दूसरी तरफ अपराध से भी नाता खत्म नहीं हो रहा था।
रघुराज प्रताप सिंह यानी राजनीति के राजा भैया के लिए सबसे मुश्किल वक्त रहा जब मायावती की सरकार आयी। भाजपा नेता पूरन सिंह बुंदेला ने राजा भैया पर कथित तौर पर अपहरण और धमकी देने के आरोप लगाते हुए मामला दर्ज करवाया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 2 नवंबर 2002 सुबह करीब 4 बजे राजा भैया को आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA) के तहत गिरफ्तार करवाकर जेल में डलवा दिया।
रघुराज प्रताप सिंह की भदरी रियासत की हवेली में भी मायावती ने पुलिस का छापा डलवा दिया था। कहा जाता है कि इस छापे में हवेली से कई हथियार बरामद हुए थे।
इसके बाद साल था 2003 और अब सूबे में सरकार मुलायम सिंह यादव की थी। इसी सरकार ने राजा भैया के ऊपर से पोटा संबंधी सभी आरोप हटा लिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए सरकार को पोटा हटाने से रोक दिया। साल 2004 में आखिरकार उन पर से पोटा हटा लिया गया और जेड प्लस सुरक्षा देकर सरकार में मंत्री बना दिया गया।
बीएसपी बनी राजा भैया की मुसीबत
राजा भैया ने 2007 के चुनावों में फिर से निर्दलीय उम्मीदवार बनकर उतरे और भारी जीतकर दर्ज की। मायावती फिर से सत्ता में आई। इस बार वह बिना बैसाखी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार की मुखिया थी। लिहाजा, उन्होंने अपने सियासी दुश्मनों से एक-एक कर बदला लेना शुरू कर दिया। राजा भैया की बारी जल्दी ही आ गई।
बसपा उम्मीदवार को जान से मारने के आरोप में उन्हें अक्टूबर 2010 में गिरफ्तार कर लिया गया, वे करीब 26 महीने जेल में रहे। हालांकि 2011 में फिर वो बाहर आ गए। समय का पहिया बदला। 2012 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राजा भैया जीते और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार में खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री बने।
इस चुनाव में एक बड़ा दिलचस्प किस्सा है। दरअसल राजा भैया 19 अक्टूबर 1967 को पैदा हुए। लेकिन दिलचस्प बात तो ये है 10वीं की मार्कशीट के अनुसार वह 1969 में पैदा हुए। इसमें एक झोल और भी है। दरअसल 2012 के चुनाव के दौरान उन्होंने जो नामांकन पत्र जारी किया उसमें अपनी उम्र 38 साल बताई। इसके आधार पर माने तो 1993 में वह 19 साल के थे जब पहली बार विधायक बने। जबकि चुनाव लड़ने की उम्र 25 है। खैर राजा ने इस बारे में फाई देते हुए कहा, “प्रमाण पत्र में छपि उम्र के लिए मैं नहीं वो टाइपिस्ट जिम्मेदार है जिसने गलत टाइप किया, मैं कोई महिला थोड़े हूं जो अपनी उम्र छिपाऊं।
साल 2013 में कुंडा के बल्लीपुर गांव में एक विवाद सुलझाने पहुंचे तत्कालीन डीएसपी जियाउल हक को जान से मार दिया गया। आरोप था एक मात्र बाहुबली रघुराज प्रताप सिंह पर और फिर उन्हें अखिलेश की कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा। वही राजा भैया अब समाजवादी पार्टी से दूर हो चुके हैं।
फिलहाल रघुराज प्रताप सिंह पर अब तक 47 केस दर्ज हो चुके हैं। इनमें से कई मामलों में उन्हें क्लीन चिट भी मिल चुकी है। तो कुछ मुकदमे शासन-सत्ता के दबाव में वापस लिए जा चुके हैं। 2018 में रघुराज प्रताप सिंह ने जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नाम से अपनी पार्टी बनाई और 2022 में पहली बार इस पार्टी की तरफ से उम्मीदवार उतरे थे।