
सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत गिरफ्तारी के ED के अधिकार को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा, ED की गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के कई प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि, आरोपी को ECIR (शिकायत की कॉपी) देना भी आवश्यक नहीं है। इतना ही बहुत है कि आरोपी को यह बता दिया जाए कि उसे किन आरोपों के तहत अरेस्ट किया जा रहा है। PMLA कानून के तहत गिरफ्तारी, जमानत देने, संपत्ति जब्त करने का अधिकार CrPC के दायरे से बाहर है।
याचिका में क्या कहा गया था?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पीएमएलए के कई प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए 100 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई थीं। इसमें ईडी की शक्तियों, गिरफ्तारी के अधिकार, गवाहों को समन व संपत्ति जब्त करने के तरीके और जमानत प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। याचिकाओं में कहा गया कि जांच एजेंसी को जांच करते समय सीआरपीसी का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए। इस मामले में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई वकीलों ने अपना पक्ष रखा था। याचिकाएं कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम, एनसीपी नेता अनिल देशमुख व अन्य की ओर से दायर की गई थीं।
17 साल में सिर्फ 23 ठहराए गए हैं दोषी
केंद्र सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि पीएमएलए कानून 17 साल पहले लागू हुआ था। PMLA के तहत दर्ज 5,422 मामलों में केवल 23 लोगों को दोषी ठहराया गया है। 31 मार्च तक ईडी ने एक लाख करोड़ से ज्यादा की संपत्ति अटैच की है और 992 मामलों में चार्जशीट दायर की है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को विपक्ष के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि इसी कानून के तहत ED ने सत्येंद्र जैन को अरेस्ट किया है और सोनिया-राहुल से भी जांच एजेंसी इसी के तहत पूछताछ कर रही है।