ईरान के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति रईसी से जयशंकर की मुलाकात आखिर क्यों थी जरूरी?

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नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को ईरान के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाक़ात की। मुलाकात के मौके पर उन्होंने ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ से भी क्षेत्रीय विकास समेत द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की।

ईरान में मुलाकातों के बाद एस. जयशंकर मॉस्को के लिए रवाना हो गए हैं, जहाँ मुमकिन है कि उनकी मुलाक़ात रूसी विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव से हो सकती है।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार और समझ रखने वाले, एस. जयशंकर की इस यात्रा को बेहद ध्यान से देख रहे हैं। जयशंकर ऐसे समय पर ईरान और मॉस्को के दौरे पर पहुँचे हैं, जब एशिया में शक्ति संतुलन बदलने की बातें हो रही हैं।

दरअसल भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में लगभग तीन अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया हुआ है। साथ ही भारत हाइवे प्रोजेक्ट से लेकर कई और दूसरी परियोजनाओं पर भी काम कर रहा है।

लेकिन पेंच इस बात से बड़ जाता है क्योंकि अमेरिकी सेना के अफ़ग़ानिस्तान छोड़ते ही ज़मीन पर स्थितियां काफी तेज़ी से बदलने लगी हैं। ऐसे में ईरान से लेकर रूस भी अफ़गानिस्तान पर नज़र बनाए हुए है।

रईसी को सौंपा प्रधानमंत्री का संदेश

एस. जयशंकर ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया है। ट्वीट में उन्होंने ईरान के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति को उनकी उदारता के लिए शुक्रिया अदा किया है।

इसके साथ ही ट्वीट में उन्होंने PM के भेजे गए पत्र का भी जिक्र किया है। जयशंकर ने लिखा, ‘उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की ओर से भेजा गया एक व्यक्तिगत संदेश रईसी को सौंप दिया है।’

इस मौक़े पर एस. जयशंकर ने ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ के साथ भी द्विपक्षीय मुद्दों और क्षेत्रीय विकास से जुड़े मुद्दों पर भी विस्तार से चर्चा की थी।

गौरतलब है कि भारत और ईरान के रिश्तों में चाबहार पोर्ट एक संवेदनशील मामला है। भारत ने इस प्रोजेक्ट के एक हिस्से को पूरा किया है लेकिन दूसरे हिस्से को ईरान खुद से पूरा करने का विचार कर रहा है।

इसी बीच ईरान में भी चीन की ओर से किए गए निवेश की बातें सामने आ रही हैं जिसके चलते भारत के लिए स्थिति सोचने वाली बन गई है।

ऐसे में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये आकर खड़ी हो गई है कि किसी तरह चीन को ईरान में घुसने से रोका जाए और मध्य-पूर्व में ईरान के तौर पर अपने एक सहयोगी के साथ संबंध मज़बूत बनाए रखे जाएं।