
शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति का एक जाना माना चेहरा हैं। उनका पूरा नाम शरद गोविंदराव पवार है। वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक और वरिष्ठ नेता है। शरद पवार अब तक चार बार महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। महज 38 साल की उम्र में वो पहली बार मुख्यमंत्री बने थे।
पवार 1967 के विधानसभा चुनावों में पहली बार बारामती से विधायक बने थे। 1972 और 1978 के चुनाव में भी शरद पवार चुनाव जीते। यशवंत राव चव्हाण के संरक्षण में राजनीति शुरू करने वाले पवार ने राजनीति में पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। लेकिन वर्ष 1978 महाराष्ट्र की सियासत में बेहद खास साल माना जाता है। खासकर शरद पवार के लिए। उस वक़्त सियासी उठापटक और नाटकीय घटनाक्रम के बाद पवार की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी हुई थी। शरद पवार ने कांग्रेस में बगावत की थी।
रेड्डी कांग्रेस और इंदिरा कांग्रेस का गठजोड़
दरअसल पूरे देश में इंदिरा गांधी विरोधी आंदोलन शुरू हो गया। जयप्रकाश नारायण इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। अलग-अलग पार्टियां जेपी की लोकसंघर्ष कमेटी के झंडे तले एकजुट हो गई थीं। इस माहौल में इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल के चलते देश के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में भूचाल आ गया। 21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म हुआ।
1977 में देश में लोकसभा चुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस पार्टी के महाराष्ट्र से केवल 22 सांसद चुनकर आए थे। आपातकाल के समय शंकरराव चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। आपातकाल खत्म होने के बाद वसंतदादा पाटिल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार,महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार अरुण खोरे बताते हैं, “आपातकाल के बाद कांग्रेस टूट गई जिसका असर महाराष्ट्र की राजनीति पर भी हुआ। इंदिरा गांधी का जिस तरह से पूरे देश में विरोध हो रहा था, उस वजह से महाराष्ट्र की राजनीति में भी हलचल मच गई। इंदिरा गांधी के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस पार्टी में घमासान मचा हुआ था। इस दौरान कांग्रेस भी कई गुट में बंटी हुई नजर आ रही थी और महाराष्ट्र में कांग्रेस के दो गुट नजर आ रहे थे।
उस दौरान शंकरराव चव्हाण और ब्रह्मानंद रेड्डी ने ‘रेड्डी कांग्रेस’ बना ली थी और शरद पवार भी इसमें शामिल हो गए थे। कांग्रेस की फूट का नतीजा ये हुआ कि जनता पार्टी मजबूत हुई और रेड्डी कांग्रेस को 69 और इंदिरा कांग्रेस को 62 सीटें मिलीं। किसी को बहुमत नहीं मिला और रेड्डी कांग्रेस और इंदिरा कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली। बता दें कि यह महाराष्ट्र की पहली गठबंधन सरकार थी। 7 मार्च 1978 को बतौर मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल ने शपथ ली।
महाराष्ट्र की पहली गठबंधन सरकार
जुलाई महीने में महाराष्ट्र विधानसभा का मॉनसून सत्र चल रहा था। उस दौरान शरद पवार ने 40 विधायकों के साथ अलग होकर वंसतदादा सरकार से बाहर निकलने का फैसला ने लिया। सुशील कुमार शिंदे, दत्ता मेघे और सुंदरराव सोलंके जैसे मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया। पवार के इस फैसले से तत्कालीन सरकार अल्पमत में आ गई। मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल और उपमुख्यमंत्री नाशिकराव ने इस्तीफा दे दिया। महाराष्ट्र की पहली गठबंधन सरकार सिर्फ चार महीनों में ही गिर गई थी।
शरद पवार सबसे कम उम्र के सीएम बने
स्थितियां बदलने लगी। जनता पार्टी के साथ शरद पवार की निकटता बढ़ने लगी। इसके साथ 18 जुलाई,1978 को महाराष्ट्र में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। इस गठबंधन सरकार में समाजवादी कांग्रेस, जनता पार्टी, क्म्युनिष्ट पार्टी समेत कई अन्य पार्टियां शामिल थीं। इस गठबंधन का नाम प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट रखा गया। पवार सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि, उनकी सरकार भी ज्यादा नहीं चल पाई और 18 महीनों के बाद ही उन्हें भी कुर्सी छोड़नी पड़ी. इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बन गई।