Uttarakhand: हरिद्वार उर्स में शामिल होंगे पाकिस्तानी जायरीन, तोहफे में दी जाएगी गीता
Uttarakhand: हरिद्वार जिले में पिरान कलियर शरीफ दरगाह पर मंगलवार से शुरू हो रहा है। इस उर्स में देशभर के तमाम लोग हिस्सा लेने पहुंचेगे। इतना ही नहीं इसमें पाकिस्तान से भी जायरीन हिस्सा लेने आएंगे। जानकारी के अनुसार, सालाना होने वाले इस उर्स में इस बार पाकिस्तानी जायरीनों को भगवद्गीता की प्रति तथा गंगा जल तोहफे के रूप में दिया जाएगा।
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बता दें कि तेरहवीं सदी के चिश्ती परंपरा के सूफी संत अलाउद्दीन अली अहमद या साबिर पाक को हिंदू और मुसलमान समान रूप से मानते हैं। उनकी दरगाह रूड़की क्षेत्र में गंगा किनारे कलियर गांव में स्थित है। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने बताया कि इस बार दरगाह के उर्स में पाकिस्तान से 110 श्रद्धालु आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिरान कलियर शरीफ में हर साल पाकिस्तान से जायरीन आते हैं लेकिन इस साल पहली बार उन्हें तोहफे के तौर पर भगवद्गीता और पवित्र गंगा जल दिया जाएगा।
कई बड़े नेता उर्स में होंगे शामिल
शम्स ने कहा, ‘‘राज्य वक्फ बोर्ड और कलियर शरीफ प्रबंधन समिति संयुक्त रूप से पाकिस्तान से आने वाले श्रद्धालुओं को ये तोहफे देगी और उनसे अनुरोध करेगी कि वे अपने देश में मंदिरों के पुजारियों और महंतों को देवभूमि की ये पवित्र यादगार सौंप दें।’’ उन्होंने कहा कि उर्स के मौके पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यक्रम में हिस्सा लेने की संभावना है।
दोनों धर्मों के बीच गंगा-जमुनी परम्परा को मिलेगा बढ़ावा
वहीं वक्फ बोर्ड के अन्य सदस्य ने बताया कि हम लोग वसुधैव कुटुम्बकम् को मानते हैं। साबिर पाक भी पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते थे। उन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए हम इस बार पाक जायरीनों को एक-एक भगवद गीता और गंगाजल की गैलन देंगे। इससे दोनों धर्मों के बीच गंगा-जमुनी परम्परा को बढ़ावा मिलेगा और दोनों देशों के बीच चल रही दुश्मनी को कम किया जा सकेगा।
हरिद्वार जिले के कलियर में मौजूद है साबिर मखदूम शाह की दरगाह
गौरतलब है कि उत्तराखंड में पांचवें धाम के नाम से मशहूर साबिर मखदूम शाह की दरगाह हरिद्वार जिले के कलियर में मौजूद है। यह दरगाह 755 साल से भी ज्यादा पुरानी है। दरगाह की मान्यता न केवल देश बल्कि दुनिया के कई देश में है। बताया जाता है कि हर साल पाकिस्तान से भी सैकड़ों लोग इस दरगाह पर उर्स के मौके पर अपनी आस्था के कारण यहां पहुंचते हैं।
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