Supreme Court: धारा- 437ए मामले में शीर्ष अदालत ने भारत सरकार से मांगा जवाब
Supreme Court: देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 06 अक्टूबर को दंड प्रक्रिया संहिता(सीआरपीसी) की धारा- 437ए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर भारत सरकार को नोटिस जारी किया है। बता दें कि धारा 437ए आरोपी व्यक्तियों को उनकी अपील के दौरान ज़मानत के साथ जमानत बांड प्रस्तुत करके रिहा करने की अनुमति देने से संबंधित है।
Supreme Court: कानून में है विरोधाभास
मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने याचिका पर भारत सरकार से जवाब मांगा और इसके साथ ही अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता भी मांगी है। इस मामला में अजय वर्मा द्वारा दायर याचिका के अनुसार, संहिता की धारा 437ए और 354(डी) विरोधाभासी हैं क्योंकि 354(डी) अदालतों को आरोपी को रिहा करने के लिए बाध्य करती है।
व्यक्तिगत बांड की है जरूरत
कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि नन्नू और अन्य बनाम यूपी राज्य मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि उन स्थितियों में जहां बांड नहीं भरा गया है, लेकिन व्यक्ति बरी हो गया है, एक व्यक्तिगत बांड पर्याप्त होना चाहिए। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि केरल उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय दोनों ने पहले माना है कि धारा 437ए में “करेगा” शब्द के उपयोग को अनिवार्य आवश्यकता के बजाय एक निर्देश के रूप में समझा जाना चाहिए।
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