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शिव मंदिर के इतिहास से जुड़ा है भगवान बुद्ध का जीवन काल, जानिए क्या है कहानी

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जनश्रुतियों के अनुसार गौतम बुद्ध की माता गौतमी गर्भावस्था में इसी मंदिर के रास्ते से होकर लुम्बिनी (नेपाल) गईं थीं। यह मंदिर घनघोर जंगल के बीच में स्थित था। इस क्षेत्र के जमींदार अफजल खान ने डुग्गी-मुनादी लगवाकर लोगों को यहां बसने का आग्रह किया था।

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प्राचीन शिव मंदिर कटहरा का इतिहास बहुत पुराना है। एक तरफ जहां नेपाल से सटे मिनी बाबा धाम के नाम से सुप्रसिद्ध इटहिया का प्राचीन शिवलिंग लाखों लोगों के आस्था का केंद्र है, तो वहीं दूसरी तरफ कभी घनघोर जंगलों में निकले कटहरा के शिवलिंग के प्रति जनपद में लोगों में असीम श्रद्धा है। कटहरा प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। प्राकृतिक सौंदर्य एवं वनों से आच्छादित यह शिव मंदिर बौद्ध कालीन है।

जनश्रुतियों के अनुसार, गौतम बुद्ध की माता गौतमी गर्भावस्था में इसी मंदिर के रास्ते से होकर लुम्बिनी (नेपाल) गईं थीं। यह मंदिर घनघोर जंगल के बीच में स्थित था। इस क्षेत्र के जमींदार अफजल खान ने डुग्गी-मुनादी लगवाकर लोगों को यहां बसने का आग्रह किया था। लेकिन, कोई यहां बसना नहीं चाहता था, क्योंकि जंगल में काफी संख्या में हिंसक जानवर रहते थे। बाद में यहां के लोगों ने जंगलों को काटकर कृषि योग्य भूमि तैयार किया।

मंदिर से करीब आठ सौ मीटर दक्षिण प्राचीन कुआं का भी प्रमाण मिलता है। कुएं से मंदिर तक सुरंग भी था। इसी सुरंग के रास्ते राजा भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने जाते थे। लोगों का कहना है कि तीन सौ साल पहले अंधेरी रात में कुछ चोर मंदिर में घुसकर घंटा एवं अष्टधातुओं से बनी मूर्तियों को चुरा रहे थे। तभी उन्हें सर्प, बिच्छू एवं जहरीले जीव जंतुओं ने घेर लिया। चोरों के सामने अंधेरा छा गया। चोर जब तक कुछ समझ पाते तब तक भोर हो गई। मंदिर के पुजारी जब पूजा करने आए तो देखा कुछ लोग जमीन पर छटपटा रहे हैं। उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। चोर अपनी करनी पर बहुत ही शर्मिंदा हुए।

यह खबर जैसे ही राजा को हुई, उन्होंने चोरों को गिरफ्तार करवा लिया। हालांकि, बाद में चोरों द्वारा माफी मांगने और फिर ऐसी गलती न करने की बात पर उन्हें छोड़ दिया गया। मंदिर के उत्तर तरफ तीन विशाल पोखरे आज भी मौजूद हैं। बताया जाता है कि इस पोखरे में रानियां स्नान करने आती थीं। इतिहासकारों ने भी कटहरा शिव मंदिर का उल्लेख किया है।

मंदिर के पुजारी महंत बहरैची दास ने बताया कि सच्चे दिल से आराधना करने वाले भक्तों की कामना भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं। इस मंदिर परिसर में धर्मशाला का भी निर्माण कराया गया है। पूरे सावन भर यहां दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और जलाभिषेक करते हैं।

महाशिव रात्रि एवं सावन के महीने में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। यहां जनपद के अलावा गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बिहार एवं नेपाल राष्ट्र के भी श्रद्धालु भगवान शिव को जलाभिषेक करने आते हैं।

मंदिर पुजारी महंत बहरैची दास ने कहा कि सावन महीने के प्रत्येक सोमवार को रात 12 बजे से ही भगवान शिव को जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं की लंबी कतार लग जाती है। रात के 12 बजे साधु-संतों की पूजा के बाद मंदिर का कपाट खोल दिए जाते हैं। मेला समिति इसकी पूरी व्यवस्था करती है।

(उत्तर प्रदेश से अर्जुन कुमार मौर्य की रिपोर्ट)

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