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काला पानी की सज़ा क्या है, इस सज़ा से क्यों कांपते थे कैदी?

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काला पानी एक ऐसा कैदखाना था जिसके दर-ओ-दीवार का भी वजूद नहीं था। अगर चारदीवारी की बात की जाए तो समुद्री किनारा था और परिसर की बात की जाए तो उफान मारता हुआ अदम्य समुद्र था।  कैदी कैद होने के बावजूद आजाद थे लेकिन फरार होने के सारे रास्ते बंद थे और हवाएं जहरीली थीं। जब कैदियों की पहली टोली वहां पहुंची तो स्वागत के लिए सिर्फ और सिर्फ पथरीली और बेजान जमीन, घने और बड़े पेड़ों वाले ऐसे जंगल थे, जिनसे सूरज की किरणें छन कर भी धरती के गले नहीं लग सकती थीं।

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अगर आपको पूरी जिंदगी में एक ही जगह में और ऐक अधेरे कमरे में बंद करके कैद रखा जाये और क्या आप ऐसी जगह पर पूरी लाइफ तक रह सकते है? आपने भारत की कई जेलों और वहां कैदियों के साथ किए जाने वाले बर्ताव के बारे में जरूर सुना होगा? भारत का सबसे खूबसूरत हिस्सा अंडमान एक समय पहले कुछ लोगों के जीवन का काला समय था। यह जगह अपनी सुंदरता के अलावा कई ऐतिहासिक चीजों का गवाह बन चुका है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां सेल्युलर जेल मौजूद है। जहां काला पानी की सजा दी जाती थी। क्या आप जानते हैं कि काला पानी की सजा क्या होती है?

अंग्रेजों ने काला पानी की सजा के लिए खासतौर पर ये जेल बनवाई थी ।लेकिन अब ये जेल लोगों के लिए एक स्मारक के तौर पर मशहूर है। जिसे देखने के लिए देशभर के पर्यटक पोर्ट ब्लेयर आते हैं। काला पानी की सजा बीते जमाने की ऐसी सजा थी। जिसके नाम से कैदी थर थर कांप उठते थे। अब आपके दिमाग में सवाल आएगा की ऐसा क्यों? दरअसल, यह एक जेल थी, जिसे सेल्युलर जेल के नाम से जाना जाता था। आज हम आपसे ऐसी ही एक जगह के बारे में बताने वाले है, हा वो जगह अद्भुत बिलकुल है परंतु उस जगह की तारीफ़ बिलकुल ही करने लायक नहीं है।

अंग्रेजों के जमाने में काला पानी की सजा दी जाती थी। ये सजा मौत से भी बदतर मानी जाती थी क्योंकि इसमें व्यक्ति को जिंदा रहते हुए वो कष्ट सहने पड़ते थे, जो मौत से भी ज्यादा दर्दनाक होते थे और तड़पते हुए मौत होती थी। दुनिया की कोई भी मुसबीत यहां की दर्दनाक मुसीबतों की बराबरी नहीं कर सकती थी और जब कोई भी कैदी मर जाता था तो लाश ले जाने वाला उसकी टांग पकड़कर खींचता और बिना नहलाये उसके कपड़े उतारकर रेत के ढेर में दबा देता न उसकी कब्र खोदी जाती थी और न नमाज ए जनाजा पढ़ी जाती थी। सेल्यूलर जेल को काला पानी कहा जाता था क्योंकि जेल के चारों तरफ समुद्र था और इसलिए कोई भी कैदी यहां से बच के जाने की उम्मीद नहीं कर सकता था ।

सेल्यूलर जेल अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। इसे अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाया गया था। इस जेल को बनाने में करीब 10 साल लग गए थे। इस जेल की 7 ब्रांच थीं। जिसके बीच में एक टावर बना हुआ था। यह टावर इसलिए बनाया गया था ताकि कैदियों पर आसानी से नजर रखी जा सके। इस जेल में कैदियों को बेड़ियों से बांधा जाता था। कोल्हू से तेल पिरवाया जाता था। हर कैदी को कम से कम 30 पाउंड तेल निकालना होता था। अगर कैदी यह काम करने में असर्मथ हो जाते थे तो उन्हें मारा जाता था ।

क्या काला पानी की सजा आज भी दी जाती है?

इस जेल की नींव 1897 सत्तानबे ईस्वी में रखी गई थी और 1906 में यह बनकर तैयार हो गई थी। इस जेल में कुल 698 अट्ठानबे कोठरियां बनी थीं।इस जेल का नाम सेल्यूलर पड़ने के पीछे एक वजह है। दरअसल, यहां हर कैदी के लिए एक अलग सेल होती थी और हर कैदी को अलग-अलग ही रखा जाता था। ताकि वो एक दूसरे से बात न कर सकें। ऐसे में कैदी बिल्कुल अकेले पड़ जाते थे और वो अकेलापन उनके लिए सबसे भयानक होता था। कैदियों को अलग अलग सेल में रखे जाने का मकसद यह था कि वह भारत की आजादी को लेकर किसी भी तरह की कोई योजना न बना सकें और न साजिश रच सकें।  

आपको यह जानकार हैरानी होगी कि इस जेल में न जाने कितने भारतीयों को फांसी की सजा दी गई थी। लेकिन इसका रिकॉर्ड कहीं मौजूद नहीं है। इसी वजह से इस जेल को भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय कहा जाता है। यही कारण है कि आज भी लोग कालापानी शब्द सुनकर सुनकर अच्छे अच्छों की रूह कांप जाती है।

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