Advertisement

कर्पूरी ठाकुरः जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा, किसी चराग़ का अपना मकां नहीं होता…

karpuri thakur

karpuri thakur

Share
Advertisement

Karpuri Thakur:  मशहूर शायर वसीम बरेलवी ने लिखा है…. जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा, किसी चराग़ का अपना मकां नहीं होता…ये पक्तियां बिहार की राजनीति के पुरोधा और जन नायक कर्पूरी ठाकुर पर सटीक बैठती हैं। अपने जीवन में अपने या अपने परिवार के लिए एक इंच जमीन तक न जोड़ पाने वाले कर्पूरी ठाकुर ने समाज के लिए जो किया वो आज भी एक मिसाल है। वे जनहित के अपने कामों की बदौलत ही जन नायक कहलाए। केंद्र की मोदी सरकार ने जन्मशताब्दी से ठीक एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की है। इस अवसर पर एक नजर कर्पूरी ठाकुर के उस जीवन संघर्ष पर जिसने उन्हें जन नायक बना दिया।

Advertisement

1952 में जीते फिर कभी नहीं हारे

कर्पूरी ठाकुर नाई समाज के एक परिवार में पैदा हुए। उनका जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर में पिंतौझिया गांव(वर्तमान में कर्पूरी ग्राम) में हुआ। बिहार की राजनीति में दो बार सीएम रहे। कर्पूरी ठाकुर ने पहला विधानसभा चुनाव 1952 में लड़ा और इसके बाद कभी हार का मुंह नहीं देखा। उन्होंने यह चुनाव सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर ताजपुर विधानसभा से लड़ा था।

दो बार रहे सीएम

वह पहली बार दिसंबर 1970 से जून 1971 तक, दूसरी बार दिसबंर 1977 से अप्रैल 1979 तक प्रदेश के सीएम रहे। वह दोनों बार ही अपना कार्यकाल तो पूरा नहीं कर सके लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में जो मिसाल कायम की उसने उन्हें जन नायक की उपाधि दी।

अंग्रेजी की अनिवार्यता की थी समाप्त

बिहार की राजनीति में पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर 1967 में पहली बार प्रदेश के डिप्टी सीएम और शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़े गरीबों के लिए 12वीं तक की शिक्षा को मुफ्त किया तो वहीं अंग्रेजी अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया। आलम ये हुआ कि उनके इस फैसले की खूब आलोचना की गई लेकिन वहीं मिशनरी स्कूलों में भी इस फैसले के बाद हिन्दी पढ़ाई जाने लगी। कहते हैं उन दिनों एक कथन खूब चला कि फलां कर्पूरी डिवीजन से पास हुआ है। दरअसल यह एक तंज था क्योंकि जब कोई बच्चा अंग्रेजी विषय में फेल हो जाता तो लोग यही कहते नजर आते।

अपने लिए इंच भर जमीन न जोड़ पाए

उनकी सादगी की मिसाल आप इस बात से समझ सकते हैं कि दो बार सीएम और कई बार विधायक रहने के बाद भी वह अपने लिए एक अदद मकान तक नहीं बनवा पाए। इतना ही नहीं वह पटना या अपनी पैतृक भूमि पर इंच भर जमीन तक न जोड़ पाए। वह रिक्शे से आते-जाते क्योंकि उनका वेतन उन्हें कार खरीदने की इजाजत नहीं दे रहा था। या यूं कहें कि वो अपनी सैलरी से एक अदद चार पहिया वाहन नहीं खरीद पा रहे थे। कई बार विधायक उनसे कहते कि सरकार विधायकों के लिए सस्ती दर पर जमीन दे रही है, आप भी खरीद लीजिए तो कर्पूरी ठाकुर मना कर देते और कहते मेरे बच्चे अपने गांव में रह लेंगे।

दोस्त का फटा कोट पहने पहुंचे आस्ट्रिया

कहा जाता है कि जब 1952 में कर्पूरी ठाकुर विधायक बने तो उन्हें एक प्रतिनिधिमंडल के साथ आस्ट्रिया जाना था लेकिन जेब में इतने पैसे नहीं थे कि एक कोट सिलवा लिया जाए। सो उन्होंने अपने एक मित्र से कोट उधार ले लिया लेकिन वह कोट भी फटा हुआ था। कर्पूरी उस कोट को पहन आस्ट्रिया पहुंचे तो यूगोस्लाविया के शासक मार्शल टीटो की नजर उनके कोट पर पड़ी। उसके बाद उन्होंने कर्पूरी जी को एक नया कोट गिफ्ट किया।

बेटे को पत्र में लिखते…’लोभ में मत आना’

आज के समय अगर हम सियासत और ईमानदारी की बात एक साथ करें तो आपको यह विरोधाभासी लग सकता है। वो कर्पूरी ठाकुर ही थे जो इतने लंबे राजनीतिक सफर के बाद भी आर्थिक विरासत के नाम पर अपने परिवार को कुछ न दे सके। वो मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने बेटे को पत्र लिखते तो उसमें तीन लाइन जरूर लिखी होती। तुम इससे प्रभावित मत होना…। कोई लोभ लालच देगा तो उस लोभ में मत आना…। मेरी बदनामी होगी।   

बहनाई से बोले… अपना पुस्तैनी काम शुरू कीजिए

जब वो दूसरी बार सीएम रहे तो उन्होंने राज्य सरकार की नौकरियों में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। इतना ही नहीं राज्य के सभी विभागों में हिन्दी में काम करने को जरूरी किया और कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करवाया। बताते हैं कि जब वह मुख्यमंत्री थे तो उनके बहनोई उनके पास नौकरी लगवाने की सिफारिश लेकर आए लेकिन कर्पूरी ने उनकी बात को गंभीरता से सुनने के बाद जेब से 50 रुपये निकाले और बोले जाइए, उस्तरा और अन्य सामान खरीद कर अपना पुस्तैनी काम शुरू कीजिए।

सीएम रहते पिता को पीटने आए थे लठैत

एक बार कर्पूरी ठाकुर के पिता बीमारी के कारण जमीदारों की सेवा करने न जा सके। इस पर जमींदारों ने उनके घर लठैत भेजे। खबर जिला प्रशासन को लगी तो उसने सभी लठैतों को बंदी बना लिया। कर्पूरी ने बिना शर्त यह कहकर सबको छुड़वा दिया कि ‘पता नहीं कितने असहाय लाचार और शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोड़ देते हैं ।  किस-किसको बचाओगे। सभी मुख्यमंत्री के मां-बाप हैं क्या। जाओ प्रदेश में हर जगह शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ। एक भी परिवार सामंतों के जुल्मों का शिकार न हो। 

‘वो कभी कुछ मांगते ही नहीं’

कर्पूरी ठाकुर से जुड़ा एक किस्सा उस समय के उत्तर प्रदेश में नेता रहे हेमवती नंदन बहुगुणा ने बताया था। उन्होंने लिखा कि उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल ने पत्र के माध्यम से पटना में रह रहे अपने एक हरियावी मित्र से कहा कि यदि कर्पूरी ठाकुर कभी पांच या दस हजार रुपये उधार मांगे तो दे देना ये आपका मुझ पर कर्ज रहेगा। इसके बाद कई बार देवीलाल ने अपने मित्र से पूछा कि उन्होंने कुछ मांगा? हर बार जवाब यही मिला कि वो कुछ मांगते ही नहीं।

झोंपड़ी देख रो पड़े थे हेमवती नंदन बहुगुणा

कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु उपरांत जब हेमवती नंदन बहुगुणा उनके पैतृक गांव पहुंचे तो गांव में उनकी झोंपड़ी देख रो पड़े। वे इतनी लंबी सियासी पारी के बावजदू अपने परिवार के लिए एक अदद घर तक न बनवा सके। दिल का दौरा पड़ने से कर्पूरी ठाकुर ने 64 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को अंतिम सांस ली। अपने चार दशक के राजनीतिक करियर में उन्होंने ईमानदारी और जनहित कार्यों की वो मिसाल पेश की कि जिसने उन्हें जन नायक बना दिया।

यह भी पढ़ें: Bharat Ratna: ‘जननायक’ की 100वीं जयंती, भारत रत्न से होंगे सम्मानित

Hindi Khabar App: देश, राजनीति, टेक, बॉलीवुड, राष्ट्र, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल, ऑटो से जुड़ी ख़बरों को मोबाइल पर पढ़ने के लिए हमारे ऐप को प्ले स्टोर से डाउनलोड कीजिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *