झारखंड से एक बेहद दिलचस्प ख़बर सामने आई है। दरअसल, युवा उद्यमियों ने नदियों-तालाबों और डैमों के बेकार जलकुंभी को लाखों रुपए कमाई का जरिया बनाया लिया है। जमशेदपुर में गौरव आनंद, रौनक राठौर और पंकज उपाध्याय जैसे युवा उद्यमी एक साथ मिलकर जलकुंभी से बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन कर रहे हैं। जलकुंभी से वे सभी अच्छी खासी कमाई भी कर रहे हैं।
स्वर्णरेखा और खरकाई नदी से निकलने वाले जलकुंभी को युवा उद्यमियों ने रिसाइकल करने का निर्णय लिया। युवाओं ने उससे नए नए प्रोडक्ट बनाने का फैसला किया। इस फैसले के बाद गौरव आनंद, रौनक राठौर और पंकज उपाध्याय ने मिलकर जलकुंभी की प्रोसेसिंग शुरू की। अलग-अलग प्रक्रियाओं से गुजरते हुए जलकुंभी के रेशे तैयार किए गए। जलकुंभी के रेशे बन जाने के बाद साड़ी लैंपशेड, शोपीस और डायरी का गत्ता समेत कई अन्य उत्पाद बनाए जा रहे हैं। खास बात यह है कि जलकुंभी के रेशे से बनने वाले प्रोडक्ट इतने बेहतर क्वालिटी के होते हैं कि बाजार में आते ही हाथों हाथ बिक जाते हैं।
तीन युवा उद्यमियों के सोच ने सबसे पहले तो बेकार पड़े जलकुंभी को उपयोगी वस्तु की श्रेणी में ला दिया है। दूसरी बड़ी बात यह है कि इस काम ने महिलाओं के लिए स्वरोजगार का एक बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है। डैम और तालाबों से जलकुंभी को निकालने के काम से लेकर उनकी साफ-सफाई,कटाई छटाई समेत प्रोसेसिंग की पूरी प्रक्रिया में स्थानीय महिलाओं को बड़े पैमाने पर काम मिलना शुरू हो गया है। कम शारीरिक मेहनत और स्थानीय स्तर पर काम मिलने के कारण महिलाएं भी इस काम को प्राथमिकता दे रही हैं। यही वजह है कि जमशेदपुर और आसपास की सैकड़ों महिलाएं इस काम से जुड़ गई है। रोजगार मिल जाने से अब इनके जीवन में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। हाथ पर चार पैसे आने से महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं।
जलकुंभी से बने उत्पादों की डिमांड बाजार में काफी अच्छी है। इसे देखते हुए इस सेक्टर में रोजगार की भी अपार संभावनाएं हैं। रौनक राठौर बताते हैं कि जलकुंभी से जुड़े काम में फिलहाल सैकड़ों महिलाएं शामिल है। उनका मकसद है कि आने वाले समय में इस काम से दस हजार परिवारों को जोड़ा जाए। यदि ऐसा होता है तो इलाके में महिलाओं और पुरुषों को रोजगार मिलेगा साथ ही उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी।
बेकार जलकुंभी को लाखों रुपए कमाई का जरिया बनाने वाले तीनों युवा उद्यमियों ने ऊंची डिग्रियां हासिल कर रखी है। इसके साथ ही इन उद्यमियों के पास बड़े-बड़े काम करने का एक्सपीरियंस भी है। अलग-अलग संस्थानों में काम करने के बाद इन युवाओं ने एक साथ मिलकर जलकुंभी से नए नए उत्पाद बनाने के लिए हाथ मिलाया है।
पंकज उपाध्याय इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन इंजीनियर है। इनका कहना है कि नदी और तालाब को दूषित होने से बचाने के साथ बेकार पड़ी जलकुंभी को उपयोग में लाना उनका मकसद है। इनका कहना है कि जलकुंभी से बने उत्पाद को देश के कई राज्यों में भेजने के बाद उनका लक्ष्य है कि यहां के बने सामान विदेशों तक जाएं। गौरव आनंद को टाटा स्टील कंपनी के साथ भारत सरकार के कई प्रोजेक्ट में अपनी सेवा देने का अनुभव रहा है। इन्होंने सड़क निर्माण में प्लास्टिक के उपयोग और किचन वेस्ट इससे बायोगैस बनाने पर भी काम किया है।
जलकुंभी से साड़ी, लैंपशेड, शोपीस, कागज के गत्ते समेत कई अन्य आइटम बनाने का आईडिया इन युवाओं को यूं ही नहीं आया है। एक समय था जब स्वर्णरेखा और खरकाई नदियां जलकुंभी के मानो हरे विशाल चादर से ढकी रहती थी। दोनो नदियों को लगातार स्वच्छ करते हुए इन युवा उद्यमियों को एक नया आईडिया मिला। जलकुंभी पर इन्होंने काफी रिसर्च किया और उसके बाद यह तय किया कि बेकार पड़े जलकुंभी को वालों कमाई का जरिया बनाया जाए। कुछ नया करने की सोच को लोगों का साथ भी मिला और अच्छे परिणाम सबके सामने आने लगे। आज इन युवाओं की सोचने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया है और इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन किया है।
(जमशेदपुर से बरून कुमार की रिपोर्ट)
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