New Delhi: आम आदमी पार्टी के कैंपेन सॉन्ग ‘जेल का जवाब वोट से’ को बैन कराने की साजिश रच रही भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा के तमाम हथकंडे अपनाने के बाद भी आखिरकार सत्य की जीत हुई और चुनाव आयोग ने बिना किसी बदलाव के ‘‘आप’’ के कैंपेन सॉन्ग ‘जेल का जवाब वोट से’ को अधिकारिक मंजूरी दे दी है। सोमवार को पार्टी मुख्यालय में यह जानकारी साझा करते हुए ‘‘आप’’ के वरिष्ठ नेता दिलीप पांडे ने कहा कि हम भाजपा के दबाव में नहीं झुके। इसका परिणाम यह हुआ कि चुनाव आयोग को हमारे कैंपेन सॉन्ग को अनुमति देनी पड़ी। हमने आयोग की किसी भी आपत्ति को स्वीकार नहीं किया, बल्कि उसकी आपत्ति पर ही सवाल उठाया। 27 अप्रैल को चुनाव आयोग ने ‘‘आप’’ के कैंपेन सॉन्ग पर रोक लगाकर मान लिया कि भाजपा की केंद्र सरकार तानाशाही है।
‘‘आप’’ के वरिष्ठ नेता एवं विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि बीजेपी की सरकार बदगुमानी में सभी संवैधानिक संस्थाओं का दुरूपयोग कर देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर रही है और संविधान को मिट्टी में मिला रही है। भाजपा अपनी दूषित राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक नीचे जाने को तैयार है, लेकिन सत्य पर बीजपी का कोई नियंत्रण नहीं है। हमने मुण्डकोपनिषद् में भी यही पढ़ा है कि आखिरकार सत्य की ही जीत होती है और ये युगों-युगों से चला आ रहा है।
उन्होंने कहा कि जब नाश मनुष्य पर छाता है तो पहले विवेक मर जाता है। विवेकहीन बीजेपी अपने अहंकार में सत्यमेव जयते का ध्येय वाक्य भी भूल गई है। इसका नतीजे यह हुआ कि 27 अप्रैल को चुनाव आयुक्त ने चिट्ठी लिखकर आम आदमी पार्टी के कैंपेन सॉन्ग को बैन कर दिया और उसपर कई आपत्तियां बता दीं। चुनाव आयोग की आपत्तियां बे-सिर पैर की हैं। ये आपत्तियां चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठा दिए हैं। आयोग ने अनजाने में ही सही, लेकिन एक सच को उजागर कर दिया और इस गाने के मुखड़े और अंतरे मे जो शब्द हैं, उसे बीजेपी से जोड़कर देखने लगी।
दिलीप पांडे ने बताया कि चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के कैंपेन सॉन्ग पर आपत्ति जताई है कि उसमें जिस जेल का जवाब वोट से देने की बात कही जा रही है, वो ठीक नहीं है। जबकि हम गाने में कह रहे हैं कि विपक्षी दलों के नेताओं को जेल भेजने की राजनीति का हम अपनी वोट की ताकत से जवाब देंगे। इससे ज्यादा लोकतांत्रिक बात और क्या होगी? हमें हंसी आती है, जब चुनाव आयोग इसे न्यापालिका पर आक्रमण जैसा बताता है। लोकतंत्र में वोट से बड़ी कोई ताकत नहीं है। हम बीजेपी की तानाशाही का जवाब वोट की ताकत से देना चाहते हैं, तो चुनाव आयोग बीच में न्यायपालिका लेकर आ जा रहा है?
उन्होंने कहा कि चुनाव आयुक्त ने कहा है कि गाने में तानाशाही पार्टी को हम चोट देंगे, कहना ठीक नहीं है, क्योंकि इससे हिंसा को बढ़ावा मिलेगा। आयोग की हिंदी इतनी कमजोर है कि वो चोट को केवल हिंसा से जोड़कर देख पा रहा है। चोट दिल, दिमाग, अहंकार, कुशासन और गुंडागर्दी पर भी लगती है। चोट के कई सारे संदर्भ हैं, लेकिन आयोग केवल इतना ही समझ पाया। साथ ही आयोग ने इसे सत्ताधारी पार्टी से जोड़ दिया। इसका मतबल आयोग भी जानता है कि तानाशाह कौन है और किसकी तानाशाही पर चोट पहुंचने वाली है। इसमें हमने गतल क्या कहा है? हमारा कहना है कि जो पार्टी तानाशाही दिखा रही है, उसपर हम वोट की ताकत से चोट करेंगे। यही लोकतंत्र की प्रक्रिया है।
दिलीप पांडे ने कहा कि इस देश के संविधान ने हमें यही सिखाया है कि अगर आप किसी पार्टी को सत्ता से बाहर करना चाहते हैं तो आप अपने वोट का इस्तेमाल उसके खिलाफ कीजिए। दिक्कत यह है कि बीजेपी 5 साल में वोट करने की व्यवस्था को नहीं मानती है। पूरे देश के लोग वोट करेंगे, लेकिन बीजेपी के आशीर्वाद से सूरत के लोगों को इस बार बाबा साहब अंबेडकर के दिए गए वोट के अधिकार का इस्तेमाल करने को नहीं मिलेगा। क्योंकि बीजेपी को लोकतंत्र में विश्वास नहीं है।
चुनाव आयोग को तानाशाही और गुंडागर्दी के खिलाफ वोट देने की बात से भी आपत्ति है। चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखने से पहले सोच लेना चाहिए था कि या तो हम एक्सपोज होंगे या हमें फैसला देना होगा कि सभी देशवासी गुंडागर्दी के हक में वोट करें। चुनाव आयोग अपने प्रचार में कहता है कि सच्चा और अच्छा चुनिए, लेकिन चुनिए जरूर। ये सब उनका ब्रांड एंबेसडर कहता है। लेकिन जब हम गुंडागर्दी के खिलाफ वोट डालने की बात करते हैं तो आयोग उस पर आपत्ति जताता है।
दिलीप पांडे ने कहा कि कैंपेन सॉन्ग में इस तरह से पक्तियों का इस्तेमाल काफी पुराना है। हमारे राजनीतिक पूर्वजों ने इतिहास में इससे भी ज्यादा तीखे स्लोगन का इस्तेमाल किया है। जिसे देखकर चुनाव आयोग को शर्म आएगी। आयोग कहता है कि गाने में आम आदमी को जेल में डालने की बात भी सही नहीं है। जबकि हमने सिर्फ इतना कहा कि जिन लोगों ने भी इनका विरोध किया, इन्होंने उसे जेल में डाल दिया। अब ऐसे लोगों को हम वोट के जरिए सत्ता में जाने से रोकेंगे। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अगर हम कह रहे हैं कि इन सब चीजों के खिलाफ अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल करेंगे और चुनाव आयोग या बीजेपी इसपर आपत्ति जताते हैं तो लोगों को ये समझने में देर नहीं लगनी चाहिए कि कौन किसके साथ है और कौन किसके खिलाफ है।
उन्होंने बताया कि हमने 30 अप्रैल को चुनाव आयोग की चिट्ठी का खंडन करते हुए हर प्वॉइंट का जवाब दिया। हमने चुनाव आयोग की हर टिपण्णी पर अपनी आपत्ति जताई। हमने चुनाव आयोग की किसी भी आपत्ति और सुझाव को नहीं स्वीकार किया। हमने अपने चुनावी कैंपेन सॉन्ग के किसी भी शब्द में बदलाव नहीं किया है। हमने चुनाव आयोग की तानाशाही के आगे घुटने नहीं टेके। हम बीजेपी के नापाक मंसूबों के आगे नहीं झुके। इसका नजीता ये हुआ कि लोकतंत्र और सच्चाई की जीत हुई। बीजेपी की हार हुई, उसका अहंकार खत्म हुआ और हमें वैधानिक रूप से दिल्ली और देश की जनता की भावनाओं को सामने रखने वाले कैंपेन सॉन्ग को जनता के बीच लेकर जाने का मौका मिला।
दिलीप पांडे ने कहा कि यह सब बीजेपी के लोकसभा चुनाव में हार के डर का परिचय है। पिछले चरणों के चुनाव के रुझानों के आधार पर बीजेपी को ये समझ में आ गया है कि उनके पैरों के नीचे से जमनी खिसक रही है। इसलिए वो इतने नीचले स्तर पर जाकर संवैधनिक संस्थाओं का इस्तेमाल कर रही हैं, जितना नीचे इस देश के राजनीतिक इतिहास में कोई नहीं गिरा। दिलीप पांडे ने दिल्ली और देश की जनता से अपील करते हुए कहा कि गलत वैक्सीन से जान खतरे में, गलत वोटिंग से संविधान खतरे में। बचकर रहना मोदी जी के चक्कर से, नहीं तो इस बार हिंदुस्तार खतरे में।
कैंपेन सॉन्ग के सवाल पर दिलीप पांडे ने बताया कि 2 मई को चुनाव आयोग की तरफ से हमारे कैंपेन सॉन्ग के अप्रूवल लेटर के आने के बाद से हमने इसे आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है। इस गाने को बिना किसी बदलाव के अनुमति दी गई है।
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