Narcotics Case: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 25 नवंबर को नशीले पदार्थ रखने के आरोप में एक व्यक्ति को बरी कर दिया, 22 साल बाद उस पर इस आरोप में मामला दर्ज किया गया था। जिसमें बताया गया कि उसके पास से पोस्त के भूसे (एक नशीला पदार्थ) जब्त किया गया था। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने इस तथ्य पर विचार करने में निचली अदालतों की विफलता पर आपत्ति जताई कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी से उसके कथित आचरण की ठीक से जांच नहीं की गई या उसे समझाने की अनुमति नहीं दी गई।
शीर्ष अदालत ने यह देखते हुए आदेश दिया कि मामला 2001 का है। इसलिए दोबारा सुनवाई का आदेश देने के बजाय आरोपी व्यक्ति की रिहाई का आदेश दिया। 24 नवंबर को बरी होने से पहले वह व्यक्ति साढ़े पांच साल जेल में काट चुका था। न्यायालय ने कहा, “घटना मई 2001 की है, और इसलिए, प्रतिबंधित पदार्थ की कथित बरामदगी की तारीख से लगभग साढ़े बाईस साल बाद, इस स्तर पर अपीलकर्ता को सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आगे की जांच के अधीन करना अन्याय होगा’’।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले में ट्रायल कोर्ट ने कई पहलुओं की अनदेखी करके गंभीर और भौतिक अवैधता की है। सुप्रीम कोर्ट आरोपी की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसने अपनी दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि करने के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दस साल का कठोर कारावास और ₹1 लाख का जुर्माना था।
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