सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत किसी नागरिक का फोन टेप हो रहा है या नहीं, यह खुलासा खुद उसके आवेदन के जवाब में नहीं किया जा सकता। पूर्व में, भारत के दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) को सूचना देने का आदेश केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने दिया था। हाईकोर्ट के एकमात्र जज ने भी इसे बचाया था। इसके खिलाफ ट्राई ने अपील की, जिसे जस्टिस विभु बाखरू की अध्यक्षता में बनी खंडपीठ ने स्वीकार कर एकल जज के आदेश को पलट दिया।
पीठ ने इस आदेश में स्पष्ट किया कि सरकार को किसी नागरिक की निगरानी करने, फोन टेप करने और टैक या इंटरसेप्ट करने का अधिकार है। ऐसे निर्देशों का उद्देश्य देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, मित्र देशों से संबंध, लोकतंत्र और अपराध को रोकना है। इसलिए उन्हें आरटीआई कानून से बाहर रखा गया है। साथ ही, एक सक्षम अधिकारी पूरी तरह संतुष्ट होने पर सरकार यह आदेश जारी करती है। विचाराधीन मामले में किसी जांच प्रक्रिया को बाधित कर सकता है अगर सूचना दी जाती है।
ट्राई का काम जानकारी देना नहीं है हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि फोन टैपिंग दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी से जुड़ा मामला नहीं है। साथ ही, कानून के अनुसार ट्राई को इस बारे में सूचना देने का अधिकार नहीं है। ट्राई को सूचना लेने की पूरी शक्ति मिलेगी अगर इसके विपरीत कोई निर्देश दिए जाएंगे। वह सेवा प्रदाताओं के काम में बाधा डाल सकती है। कोर्ट ने निर्णय दिया कि आरटीआई अधिनियम में सूचनाएं शामिल हैं जो किसी निजी संस्था से संबंधित हैं और सरकारी अधिकारी कानून के तहत उसे ले सकते हैं।
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