Advertisement

SC से केंद्र सरकार को बड़ा झटका, दिल्ली सरकार को दिए ट्रांसफर, पोस्टिंग के अधिकार

Share
Advertisement

देश की सबसे बड़ी अदालत में चल रही अधिकारों की लड़ाई में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने केंद्र की मोदी सरकार को चारों खाने चित्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली में सिविल सर्वेंट्स के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया और केंद्र की मोदी सरकार को साफ-साफ कह दिया कि दिल्ली में उपराज्यपाल वीके सक्सेना नहीं बल्कि जनता की चुनी हुई केजरीवाल सरकार ही असली बॉस है। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ- CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने ये ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें

  • केंद्र और राज्य दोनों के पास कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन केंद्र को अपना दखल सीमित रखना चाहिए
  • केंद्र का इतना ज्यादा दखल ना हो कि वह राज्य सरकार का काम अपने हाथ में ले ले। इससे संघीय ढांचा प्रभावित होगा।
  • अगर किसी अफसर को ऐसा लगता है कि उन पर सरकार नियंत्रण नहीं कर सकती है, तो उनकी जिम्मेदारी घटेगी और कामकाज पर इसका असर पड़ेगा।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप-राज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करना होगा।

सुप्रीम के इस ऐतिहासिक फैसले का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट के जरिए स्वागत किया है और इसे जनंतत्र की जीत बताया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया है कि, “दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया। इस निर्णय से दिल्ली के विकास की गति कई गुना बढ़ेगी। जनतंत्र की जीत हुई।”

दिल्ली सरकार की तरफ से शिक्षा मंत्री आतिशी, स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा।

फैसला सुनाते हुए CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार को ये भी नसीहत दी कि कहा कि हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि हम जस्टिस भूषण के 2019 के फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार के पास ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर से ऊपर के अफसरों पर कोई अधिकार नहीं है। भले ही NCTD पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास भी ऐसे अधिकार हैं कि वह कानून बना सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने पढ़ाया केंद्र को कानून का पाठ

  • अनुच्छेद 239AA व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है, संसद के पास तीसरी अनुसूची में किसी भी विषय पर कानून बनाने की पूर्ण शक्ति है।
  • यदि केंद्र और राज्य के कानूनों के बीच विरोध होता है, तो केंद्रीय कानून प्रबल होगा।
  • संघीय संविधान में दोहरी पोलाइटी है, “वी द पीपुल” द्वारा चुनी गई सरकार के दोहरे सेट जनता की इच्छा का प्रतिबिंब हैं।
  • दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है, लेकिन विधानसभा को सूची 2 और 3 के तहत विषयों पर अधिकार  प्रदान किया गया है
  • लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार दिल्ली की जनता के प्रति जवाबदेह है
  • निर्वाचित सरकार के पास लोगों की इच्छा को लागू करने की शक्ति होनी चाहिए
  • केंद्र द्वारा सभी विधायी शक्तियों को अपने हाथ में लेने से संघीय प्रणाली समाप्त हो जाती है
  • संघवाद के सिद्धांत का सम्मान किया जाना चाहिए, केंद्र सभी विधायी, नियुक्ति शक्तियों को अपने हाथ में नहीं ले सकता
  • अगर चुनी हुई सरकार अधिकारियों को नियंत्रित नहीं कर सकती तो वो लोगों के लिए सामूहिक दायित्व का निर्वाह कैसे करेगी?

गौरतलब है कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव चल रहा था। दिल्ली सरकार कह रही थी कि इस मामले में उपराज्यपाल हस्तक्षेप ना करें। जबकि उपराज्यपाल वीके सक्सेना केंद्र सरकार से मिली शक्तियों का राग अलाप रहे थे और इसी बात को लेकर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। गुरुवार को सिविल सर्वेंट्स के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार के मामले में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *