बिकरू मुठभेड़ कांड: पुलिस को मिली क्लीनचिट, जांच आयोग ने रिकॉर्ड गॉयब करने में शामिल दोषियों पर की कार्रवाई की सिफारिश
कानपुर। यूपी के कानपुर जिले में बहुत दिनों तक चर्चा में रहे बिकरू कांड का मुख्य अपराधी विकास दुबे जुलाई 2020 में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। जिसकी जांच के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज, न्यायमूर्ति डॉ. बीएस चौहान की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की जांच आयोग का गठन किया था। इसमें हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज शशिकांत अग्रवाल और पूर्व पुलिस महानिदेशक के. एल गुप्ता भी सदस्य के रूप में शामिल थे। सरकार ने यह रिपोर्ट बृहस्पतिवार को विधानसभा में पेश की थी। 797 पेज की ये रिपोर्ट है। जिसमें से 132 पन्नों पर जांच रिपोर्ट और 665 पन्नों पर तथ्यात्मक सामग्री है।
मुठभेड़ में 8 जवान हुए थे शहीद
रिपोर्ट में आयोग ने विकास दुबे के एनकाउंटर को सही बताते हुए पुलिस को क्लीनचिट दे दी है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विकास और उसके गैंग में शामिल सभी अपराधियों को स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। वो विकास दुबे को सारी जानकारी उपलब्ध कराते थे, इसलिए जब पुलिस विकास दुबे को पकड़ने के लिए उसके घर गई, तो उन्होंने जवाबी फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें पुलिस के 8 जवान शहीद हो गये थे। दबिश की जानकारी उन्हें चौबेपुर पुलिस से पहले ही मिल गई थी।
बता दें कि पिछले साल जुलाई की 2 व 3 तारीख की रात को विकास दुबे और उसके गुर्गों को पकड़ने के लिए पुलिस दबिश देने गई थी, जहाँ पुलिस के 8 जवानों की हत्या कर दी गई थी। इसकी जवाबी कार्यवाही में अपराधियों और पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में कई अपराधियों की भी मौत हो गई थी।
आयोग ने पुलिस और कानून में कीं सुधार की सिफारिशें
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस मामले से संबंधित, स्थानीय पुलिस कर्मियों, प्रशासनिक अधिकारियों के रवैये और न्यायिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए कई सिफारिशें भेजी हैं। इसके अलावा मामले से संबंधित रिकॉर्ड्स के गायब होने में जिन लोगों का हाथ है, उन्हें दंडित करने की भी सिफारिश की है।
गठित आयोग ने सभी पहलुओं की जांच करने के बाद कहा है “कि मुठभेड़ में शामिल पुलिस टीम ने जो तथ्य सामने रखे थे, उसका खंडन किसी ने नहीं किया है न तो जनता ने और न ही मीडिया ने। इसके अलावा विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे ने भी एक हलफनामा दिया था, जिसमें उन्होंने मुठभेड़ को फर्जी बताया था, लेकिन वह अपना पक्ष रखने के लिए आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुईं। इसलिए मुठभेड़ के मामले में पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही पर संदेह नहीं किया जा सकता है। आयोग ने कहा कि मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट में भी आयोग की रिपोर्ट से मिलते-जुलते परिणाम सामने आए थे।“