बिहार का किशनगंज पहले अदरक उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन आज जिले में अदरक की खेती बहुत कम है या युं कहे तो अदरक की खेती खत्म ही हो रही है। किशनगंज से आधे बिहार को अदरक भेजा जाता है। यहां के अधिकांश किसान अदरक की खेती से अपना घर चलाते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से अदरक की कीमतों में गिरावट और अदरक के पौधे में पीलापन रोग के कारण किसानों ने अदरक की खेती छोड़ दी।
किशनगंज के ज्यादातर गांवों में अदरक की खेती अब इक्का-दुक्का किसानों द्वारा की जाती है। पहले 2-4 बीघे में अदरक की खेती की जाती थी, लेकिन आज यह 5 से10 कठ्ठे में सिमट गया है। चिंता का विषय यह है कि अदरक की खेती अब जिले में ना के बराबर हो रही है। किशनगंज जिले के काशीपुर गांव में रहने वाले लोंगो का कहना है कि पहले हम दो से तीन बीघे में अदरक लगाते थे। जिले में पहले बहुत अदरक की खेती होती थी, लेकिन अब सिर्फ एक या दो किसान अदरक की खेती करते हैं।
अदरक की खेती में लगातार कमी देखने को मिल रही है। इसका कारण यह है कि किसान अदरक का उचित मूल्य नहीं पा रहा है। अदरक भी पीलिया बीमारी को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। इसलिए अदरक की खेती अब लगातार गिर रही है किसानों ने अदरक को छोड़कर सब्जी और मक्के की खेती शुरू कर दी है।
उत्तरी बिहार में अदरक कभी बिहार के किशनगंज जिले से भेजा जाता था। जिले में बहुत सारी अदरक की खेती की जाती थी, लेकिन उसका पैराग्राफ लगातार गिरता गया। आज जिले में अदरक की खेती सिमटती चली गई है। पहले हर गांव में सौ में पच्चीस से छह सौ किसान अदरक की खेती करते थे। आज उस गांव में अदरक की खेती करने वाले बहुत कम लोग हैं।
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