Bihar : मिथिलांचल में मनाया जा रहा भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक सामा-चकेवा
Sama Chakeva : सीतामढ़ी जिले में लोक आस्था और भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक सामा-चकेवा पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह पर्व छठ पूजा के समापन के साथ शुरू होता है और सात दिनों तक चलता है। इस दौरान महिलाएं और लड़कियां विशेष रूप से मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर सामा, चकेवा, चुगला, सतभैया, वृंदावन और पक्षियों की आकृतियों के माध्यम से अपनी आस्था व्यक्त करती हैं।
क्या है पर्व को मनाने की मान्यता
सामा-चकेवा पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा की पौराणिक कथा से जुड़ा है। कथा के अनुसार, एक चुगले ने सामा पर झूठा आरोप लगाया था, जिससे भगवान श्रीकृष्ण ने गुस्से में आकर अपनी बेटी को पक्षी बनने का श्राप दे दिया। लेकिन सामा के भाई चकेवा के त्याग और प्रेम के कारण उसे श्राप से मुक्ति मिली। इस कथा को याद करते हुए हर साल इस पर्व के माध्यम से भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और प्रेम का सम्मान किया जाता है।
चुगले के पुतले की परंपरा
इस पर्व की खास परंपरा में चुगले का पुतला बनाकर उसकी चोटी में आग लगाई जाती है और फिर उसे जूते से पीटने की रस्म निभाई जाती है। यह उस चुगले की बदनामी का प्रतीक होता है, जिसने सामा को झूठे आरोपों से नष्ट करने की कोशिश की थी। इसके अलावा, बहनें अपने भाइयों को चूड़े, दही और लड्डू जैसी मिठाईयों का प्रसाद देती हैं। पर्व के अंतिम दिन, यानी कार्तिक पूर्णिमा को, सामा-चकेवा की सजाई हुई टोकरी को नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है, और इस दौरान पारंपरिक गीतों के साथ विसर्जन की प्रक्रिया पूरी होती है।
मिथिलांचल में भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक
पद्म पुराण में वर्णित इस लोकपर्व का मिथिला की संस्कृति और भाई-बहन के रिश्ते पर गहरा प्रभाव है। बहनें इस अवसर पर पारंपरिक गीत गाती हैं और अपने भाई की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करती हैं। इस साल सामा-चकेवा पर्व 15 नवंबर को समाप्त होगा। मिथिला में इस पर्व का खास महत्व है, और यह भाई-बहन के अटूट रिश्ते को याद दिलाता है, जो अब भी इस क्षेत्र की संस्कृति का अहम हिस्सा है।
रिपोर्टः अमित कुमार, संवाददाता, सीतामढ़ी, बिहार
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