
चंडीगढ़: PGI चंडीगढ़ के बाहर लंगर लगाने वाले पद्मश्री लंगर बाबा अब नहीं रहे. दोपहर 3 बजे चंडीगढ़ के सेक्टर 25 श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया. लंगर बाबा के नाम से मशहूर आहुजा ने PGI के साथ ही GMSH-16 और GMCH-32 के सामने भी लंगर लगाकर लोगों का पेट भरा है. 40 सालों से लंगर बाबा सेवा कर रहे थे इसलिए उन्हें पिछले वर्ष पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था. लोगों का पेट भरने के लिए उन्होंने करोड़ों की संपत्ति को खर्च किया है.
85 साल की उम्र में हुआ निधन
उम्र के 85 बसंत देख चुके जगदीश आहूजा को लोग प्यार से ‘लंगर बाबा’ के नाम से पुकारते थे. पटियाला में उन्होंने गुड़ और फल बेचकर अपना जीवनयापन शुरू किया था. साल 1956 में लगभग 21 साल की उम्र में चंडीगढ़ आ गए थे. उस समय चंडीगढ़ को देश का पहला योजनाबद्ध शहर बनाया जा रहा था. यहां आकर उन्होंने एक फल की रेहड़ी किराए पर लेकर केले बेचना शुरू किया था.
केले बेचकर पेट भरना किया था शुरू
चंडीगढ़ में आने के दौरान लंगर बाबा के हाथ में 4 रुपये 15 पैसे थे. यहां आकर धीरे-धीरे पता लगा कि मंडी में किसी ठेले वाले को केला पकाना नहीं आता है. पटियाला में फल बेचने के कारण वह इस काम में माहिर हो चुके थे और बस फिर उन्होंने काम शुरू किया और अच्छे पैसे कमाने लगे.
12 साल की उम्र में हुआ था संघर्ष शुरू
आपको बता दे कि, लंगर बाबा साल 1947 में अपनी मातृभूमि पेशावर से बचपन में विस्थापित होकर पंजाब के मानसा शहर आ गए थे. उस समय उनकी उम्र करीब 12 वर्ष थी. इतनी कम उम्र से ही उनका जीवन संघर्ष शुरू हो गया था. उनका परिवार विस्थापन के दौरान गुजर गया था. ऐसे में जिंदा रहने के लिए रेलवे स्टेशन पर उन्हें नमकीन दाल बेचनी पड़ी जिससे उन पैसों से खाना खाया जा सके और गुजारा हो सके. कई बार तो बिक्री न होने पर भूखे पेट ही सोना पड़ता था.