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उत्तर भारत में शिव पुत्र कार्तिकेय जी का इकलौता मंदिर, जहां तय करना होता है 80 सीढ़ियों का सफरं

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क्या अपने कभी सोचा है की अगर किसी इंसान की खाल और हड्डियों को अलग अलग कर दिया जाये तो वो कैसे जिन्दा रह सकता है। लेकिन ये बातें उत्तराखंड में अजीब सी नहीं लगती। जी हाँ उत्तराखंड में हजारों ऐसे ही रहस्य और लोक कथाएं हैं जो आपको आश्चर्य में डाल देंगी वैसे तो उत्तराखंड खूबसूरती का खजाना है। लेकिन यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल है। जहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। उत्तराखंड में असंख्य मंदिरों का घर है। जिनमें से कई पौराणिक काल से संबंध रखते हैं। इस जगह पर सिर्फ भगवान शिव ही नहीं बल्कि अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। जहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। आज ऐसे ही एक धार्मिक स्थल का जिक्र करने जा रहे हैं, जिसका संबंध पौराणिक काल से है। इस मंदिर को लेकर कई ऐसी मान्यताएं और कथा है  जिनकी जानकारी लोगों को कम होती है। उत्तराखंड के गढ़वाल में घूमने आए लोग बिना इस मंदिर में मत्था टेके वापस नहीं जाते हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर की।

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यह हिंदुओं के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है, जो भगवान शिव के पुत्र कार्तिक को समर्पित है। 3050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिके के उस मंदिर के बारे में जिसके बारे में कहा जाता है की यहां भगवान कार्तिके अपने शरीर का मांस त्याग कर हडियों के ढांचे के रूप में विराजित हैं। भगवान कार्तिकेय को समर्पित, यह रहस्यमयी स्थान हिमालय के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य के बीच स्थित है। इस रहस्यमयी मंदिर तक पहुंचने के लिए कनक चौरी गांव से 3 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी होती है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है की एक बार भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय में इस बात को लेकर बहस हो गयी की किसे पहले पूजा जायेगा , जिसके फल स्वरुप दोनों भाई भगवान शिव के पास गए तो शिव ने उन्हें एक चुनौती दी जिसके अनुसार जो सबसे पहले ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करेगा उसको ही सबसे पहले पूजा जायेगा भगवान श्री गणेश, जो कि शिवजी के दूसरे पुत्र थे, ने अपने माता-पिता के चक्कर लगाए। उनके लिए माता-पिता ही ब्रह्मांड थे। श्री गणेश ने यह प्रतियोगिता जीत ली। इस पर कार्तिकेय क्रोधित हो गए और अपने शरीर का मांस माता-पिता के चरणों में समर्पित करके स्वयं हड्डियों का ढाँचा लेकर क्रौंच पर्वत चले आए। बताया जाता है कि भगवान कार्तिकेय की ये हड्डियाँ आज भी मंदिर में हैं। जिनकी पूजा करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। यह मंदिर बारह महीने श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में भगवान मुरगन के रूप में पूजा जाता है।

मंदिर में भगवान कार्तिकेय की एक मूर्ति।  यहां कार्तिक पूर्णिमा और 11 दिनों की कैलाश यात्रा जैसे कुछ त्योहार और कार्यक्रम बहुत उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।

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