RajGond : क्या है भारत के 730 जनजातियों के राजगौंडों समुदाय का लुप्त होता इतिहास ?

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RajGond : भारत की 730 जनजातियों में से एक है राजगौंड, इस समुदाय का इतिहास बहुत पुराना और विशाल है, जो की अब लुप्त होता जा रहा है। राजगौंड कोई जाति या धर्म नहीं है। यह गौंड में से बना एक समुदाय है। या कह सकते है कि राजगौंड गौंड की एक उप जाति है। हालांकि यह गौड़ से बहुत भिन्न है और इस समुदाय को क्षत्रिय कहा जाता है। राजगौंड गौंडों द्वारा दी गयी एक पदवी है। 15वीं शताब्दी में चार महत्वपूर्ण गोंड़़ साम्राज्य थे, चाँदागढ, खेरला, देवगढ और गढ मंडला प्रमुख थे।

राजगौंड राजाओं इतिहास

भारत में राजगौंड राजाओं का एक महत्वपूर्ण स्थान है और इसका मुख्य कारण उनका इतिहास ही है। 14वीं से 18वीं शताब्दी के बीच गौंडवाना में अनेक राजगौंड राजवंशों ने अपना सफल शासन स्थापित किया है। यहां के शासकीय राजाओं ने सफल शासकीय नीति तथा दक्षता का परिचय दिया है, उन्होंने कई तालाब, स्मारक और दृढ़ दुर्ग बनवाए। इन राजाओं के शासन की सीमा मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक पहुँचती है। गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने नागपुर शहर की स्थापना कर अपनी राजधानी देवगढ से नागपुर स्थानांतरित किया था। गौंडवाना की प्रसिद्ध रानी दुर्गावती राजगौंड राजवंश की रानी थी।

ऐसा कहा जाता है कि गौंड लोग केवल राजाओं को ही राजगौंड बोलते थे। इनका इतिहास बताता है कि बहुत से गौंड राजवंशों के राजाओं को राजगौंड बताया गया है। गौंड समुदाय के बीच रहने वाले सरदार या राजा को राजगौंड कहा जाता था। यह राजा गौंडों के साथ रह कर उनका राज – पाट चलाते थे, और उन्हीं राजाओं की बड़ती पीड़ी राजगौंड का राजवंश कहलाती थी। इस राजवंश के बहुत से राजगौंड राजाओं ने अपनी हिंदू संस्कृति को छोड़ कर शैव धर्म को अपना लिया था।

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