(Death Anniversary of Subhash Chandra Bose) आज पूरे देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose)की पुण्यतिथि को लोग उनके नारे और आजादी के जोश को याद करके मना रहें हैं। भारत को आजाद कराने के लिए उन्होनें नारा दिया था ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’। कहा जाता है कि अंतिम समय में सुभाष जी ने पावन नगरी काशी में अज्ञातवास का समय भी बिताया था उनके प्रपौत्र वीरभद्र ने बताया कि उनके दिमाग में काशी को लेकर काफी सारी भविष्य योजनाएं थी लेकिन उनकी मौत से वो सारी योजनाएं विफल हो गईं।
नेताजी के प्रपौत्र वीरभद्र ने बताया कि सुभाष जी ने ही महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता नाम की उपाधि दी थी। नेताजी बहुत आगे तक की सोच रखते थे इसलिए उन्होनें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से एक बार कहा था कि वो देश के बंटवारे को लेकर कोई भी बात ना मानें नहीं तो आगे आने वाले समय में सिखिस्तान और गढ़वालिस्तान की मांग उठने लगेगी।
कैथी के डिप्टी सेंट्रल इंटेलिजेंस अधिकारी ने एक बड़ी बात बताते हुए कहा कि पिछले साल उन्होनें प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ये दावा किया था कि कैथी में रहने वाले शारदानंद ब्रह्मचारी ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। श्यामाचरण ने बताया कि 02 दिसंबर 1951 को शारदानंद ब्रह्चारी कैथी आए थे। इस दौरान पिता जी स्व. कृष्णकांत पांडेय से उनकी अकस्मात भेंट हुई और वह उनकी सेवा में अंतिम दिनों में 1977 तक समर्पित रहे।
नेताजी शारदानंद नाम से 1977 तक अपनी पहचान को छिपाकर जीवित रहे। उनके हस्तलेख, पत्रों की प्रतियां व जीवित रहने के प्रमाण जस्टिस खोसला और जस्टिस मुखर्जी जांच आयोग के संज्ञान में डॉ. सुरेश चंद्र पाध्ये ने लाया था। हस्तलेख विशेषज्ञों की रिपोर्ट कहती है कि नेताजी और शारदानंद द्वारा लिखे गए पत्रों की लिखावट एक ही व्यक्ति की है।
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