Advertisement

सांसदों और विधायकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें

Share
Advertisement

‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का जिक्र करते हुए आपने कई लोगों को सुना होगा। दरअसल कई बार बहसों के दौरान ये बात सामने आती है कि फ्रीडम ऑफ स्पीच यानी बोलने की आजादी सभी को है और ये अधिकारी हमें संविधान ने दिया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सांसदों और विधायकों के ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ के अधिकार पर कुछ कहा है, जिसकी काफी चर्चा हो रही है।

Advertisement

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (3 जनवरी) को कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करते हुए भी विधायकों और सांसदों सहित किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान के लिए परोक्ष तौर पर सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। सरल शब्दों में कहें तो ये साफ है अगर कोई सांसद बयान देता है तो उसे पार्टी के साथ जोड़ना गलत होगा

जस्टिस एसए नजीर की अध्यक्षता वाली और जस्टिस बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया।

इसी पीठ ने एक दिन पहले 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। फैसले में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लिखित प्रतिबंधों को छोड़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, जो अनुच्छेद 19 का पालन करता है।

क्या था मामला?

मामला कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश सरकार का है। ये 2016 की बुलंदशहर रेप की घटना से संबंधित है। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्य मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने इस घटना को एक ‘राजनीतिक साजिश’ करार दिया था। इसके बाद कुछ लोगों ने आजम खान के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने एक रिट याचिका दायर की और उन्हें बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश देने की बात भी कही।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मामला राज्य के दायित्व और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में गंभीर चिंता पैदा करता है। इसके बाद इस मामले पर कई सवाल खड़े किए गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अन्य खबरें