चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित

New Delhi: शीर्ष न्यायालय ने सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस योजना के द्वारा राजनीतिक दलों को अज्ञात फंडिंग की अनुमति मिलती है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 31 अक्टूबर से नियमित सुनवाई शुरू की थी।
बहस के दौरान दोनों पक्षों ने दी दलीलें
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ कर रही है। जिसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल है। बहस के दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से दलीलें दी गईं। कोर्ट ने सभी पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
इस योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना के साथ एक दिक्कत यह है कि यह चयनात्मक गुमनामी और गोपनीयता प्रदान करती है। जिसकी जानकारी स्टेट बैंक के पास मौजूद रहती है। और उन तक कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी पहुंच सकती हैं।
पीठ ने कहा कि इस योजना के साथ ऐसी परेशानियां रहेंगी। अगर यह सभी राजनीतिक दलों को समान मौकें मुहैया नहीं कराएंगी। इससे इस योजना को लेकर अस्पष्टता की स्थिति बनी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस योजना का लक्ष्य काले धन को खत्म करने का बताया गया है। यह तारीफ के लायक है। किंतु, प्रश्न यह है कि क्या इससे 100 फीसदी लक्ष्य पूरा हो रहा है।
2018 में सरकार ने इस योजना को किया था अधिसूचित
चुनावी बॉन्ड योजना को केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। चुनावी बॉण्ड को भारत के किसी भी नागरिक या स्थापित इकाई की तरफ से खरीदा जा सकता है। कोई भी शख्स अकेले या फिर अन्य व्यक्तियों के साथ भी संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड को खरीद सकता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड के पात्र हैं।
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