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शादी की तो Indian Army ने निकाला…26 साल बाद महिला को मिला इंसाफ

Indian Army When she got married, the Indian Army took her out… after 26 years, the woman got justice.

Indian Army When she got married, the Indian Army took her out… after 26 years, the woman got justice.

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Supreme Court Verdict In Woman Military Job Controversy:

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महिला अफसर ने शादी कर ली तो भारतीय सेना (Indian Army) ने नौकरी से निकाल दिया। बिना कोई कारण बताओ नोटिस या अवसर दिए बिना उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। उसे नौकरी मुक्त करके घर जाने का आदेश दिया गया। वजह पूछने पर अधिकारी दुर्व्यवहार करने लगे।

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निराश होकर महिला ने इंसाफ के लिए कानून का (Indian Army)रास्ता अपनाया। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया। करीब 26 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद अब महिला को न्याय मिला। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय सेना को आदेश दिया है कि वह अधिकारी रह चुकी महिला को 60 रुपये का भुगतान करे।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि शादी और घरेलू जिम्मेदारियां किसी भी महिला को नौकरी से निकाले जाने का कारण नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal) के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की अपील पर सुनवाई की।

मनमाना फैसला लेकर लैंगिक भेदभाव किया गया

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मामला 1988 का है। महिला अधिकारी सेलिना जॉन की 26 साल की कानूनी लड़ाई को समाप्त करते हुए न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने फैसला सुनाया और कहा कि सेना में सेवाएं दे रही सेलिना को अचानक नौकरी से निकाल देना गलत और अवैध था।

पूर्व लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन मिलिट्री नर्सिंग सर्विस में स्थायी कमीशन अधिकारी थी, लेकिन उनको सिर्फ इस आधार पर नौकरी से निकाल दिया गया कि उसने शादी कर ली थी। यह स्पष्ट रूप से मनमाना फैसला था, जो लैंगिक भेदभाव और असमानता को दर्शाता है, जबकि शादी करने का नियम पुरुषों पर भी लागू होता है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट और टिब्यूनल में भी चला केस

सेलिना ने बताया कि 1982 में मिलिट्री नर्सिंग सर्विस से जुड़ी थी। उस समय वह आर्मी हॉस्पिटल, दिल्ली में ट्रेनी थी। 1985 में उसे लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन दिया गया और सैन्य अस्पताल, सिकंदराबाद में नियुक्ति मिली। 1988 में सेलिन ने एक सैन्य अधिकारी से शादी कर ली, लेकिन 27 अगस्त 1988 को एक आदेश जारी करके उन्हें लेफ्टिनेंट के पद से हटा दिया गया। सेना से सेवामुक्त कर दिया गया। न कोई नोटिस, बात रखने और बचाव करने का मौका दिया।

उन्होंने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोट्र ने ट्रिब्यूनल से संपर्क करने के लिए कहा तो उसने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal) लखनऊ में याचिका दायर की, जिसने 2016 में सेलिना के हक में फैसला सुनाया और केंद्र सरकार को उसकी नौकरी बहाल करने का आदेश दिया, लेकिन सरकार ने ट्रिब्यूनल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी अब सेलिना के हक में फैसला सुनाया।

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