जम्मू : 1 वर्ष से अधिक के निवासियों को मतदाता बनने की अनुमति देने वाला आदेश हुआ वापस
जम्मू की उपायुक्त अवनी लवासा ने तहसीलदारों (राजस्व अधिकारियों) को किसी भी व्यक्ति जो जिले में एक वर्ष से अधिक समय से रह रहे हैं उन्हें निवास का प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत करने वाले अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया है। आदेश जारी होने के ठीक एक दिन बाद वापस लिया गया है।
लवासा जिला चुनाव अधिकारी भी हैं। पहले के आदेश के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो जम्मू जिले में एक वर्ष से अधिक समय से रह रहा है वह आधार कार्ड, पानी/बिजली/गैस कनेक्शन, बैंक पासबुक, पासपोर्ट, पंजीकृत भूमि विलेख, निवास का प्रमाण-पत्र आदि जैसे दस्तावेजों का उपयोग करके मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकता है।
इस आदेश का क्षेत्रीय दलों ने तत्काल विरोध किया और जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस (जेकेएनसी) ने कहा कि उन्होंने सरकार के इस कदम का विरोध किया है।
The Deputy Commissioner of Jammu withdraws the notification which authorised all tehsildars to issue certificates of residence to people residing in Jammu "for more than one year" https://t.co/KKYthj9AMj
— ANI (@ANI) October 12, 2022
गैर-स्थानीय लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति देने का मुद्दा अगस्त से चल रहा है। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) हिरदेश कुमार ने घोषणा की थी कि गैर-स्थानीय लोग, जिनमें कर्मचारी, छात्र, मजदूर या बाहर का कोई भी व्यक्ति शामिल है, जो आमतौर पर जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं, राज्य के चुनाव वोटिंग लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं और मतदान कर सकते हैं।
उनके इस फैसले का केंद्र शासित प्रदेश के राजनीतिक नेताओं ने तुरंत विरोध किया। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि भाजपा “जम्मू-कश्मीर के वास्तविक मतदाताओं से समर्थन नहीं मिलने के बारे में असुरक्षित है कि उसे सीटें जीतने के लिए अस्थायी मतदाताओं को आयात करने की आवश्यकता है।”
2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहली बार चुनावी संशोधन किया जा रहा है।
अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन को लेकर विवादों के बीच जम्मू और कश्मीर के निवासियों को विधानसभा चुनाव के बिना एक और साल बीताना पड़ेगा। नवंबर 2018 से केंद्र शासित प्रदेश विधानसभा के बिना रहा है, जब पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद तत्कालीन राज्यपाल सत्य पाल मलिक द्वारा विधानसभा भंग कर दी गई थी।
भाजपा द्वारा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार से हटने के बाद जून 2018 में केंद्र शासित प्रदेश में राज्यपाल शासन लगाया गया था।