
ISRO SpaDeX Mission : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) प्रोजेक्ट अपने लक्ष्य के बिल्कुल करीब पहुंचने के बाद भी मिशन को पूरा नहीं कर पाया। इस मिशन का उद्देश्य दो सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में जोड़ना था, लेकिन तकनीकी कारणों से डॉकिंग प्रक्रिया को रोकना पड़ा। ISRO ने बताया कि दोनों सैटेलाइट्स की दूरी को 15 मीटर से 3 मीटर तक लाने की कोशिश सफल रही, जिसके बाद दोनों सैटेलाइट्स को एक दूसरे से दूर कर दिया गया है। अब डाटा विश्लेषण के बाद डॉकिंग की कोशिश की जाएगी। आज ये तीसरी कोशिश थी। इससे पहले भी डॉकिंग प्रोसेस को दो बार टालना पड़ गया था।
क्या होता है डॉकिंग?
अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट्स को आपस में जोड़ने की जटिल प्रक्रिया को स्पेस डॉकिंग कहा जाता है। डॉकिंग की ये तीसरी कोशिश शनिवार आधी रात के बाद शुरू हुई, जिसके तहत स्लो ड्रिफ्ट तकनीक का इस्तेमाल करते हुए दोनों सैटेलाइट्स के बीच की दूरी महज 15 मीटर लाया गया। उस समय ISRO ने कहा कि दोनों सैटेलाइट्स एक दूसरे से मिलन को तैयार हैं। 9 जनवरी को किए गए प्रयास के तहत जब दोनों सैटेलाइट्स के बीच की दूरी 230 मीटर थी, तभी सैटेलाइट का ड्रिफ्ट यानी भटकाव उम्मीद से ज्यादा हो गया और मिशन को टालना पड़ गया था।
तीसरी कोशिश में क्या हुआ?
ISRO ने 12 जनवरी को अपनी स्पेस डॉकिंग प्रक्रिया की तीसरी कोशिश की। इस बार, दोनों सैटेलाइट्स को करीब 15 मीटर की दूरी पर लाया गया। इस स्थिति में, दोनों सैटेलाइट्स एक-दूसरे के मिलन के लिए तैयार थे। इसके बाद, उनकी दूरी को 3 मीटर तक लाने की कोशिश की गई, लेकिन तकनीकी कारणों से डॉकिंग को रोकना पड़ा।
पिछली कोशिश में क्या दिक्कत आई थी?
पहली और दूसरी कोशिश में भी डॉकिंग को सफल नहीं बनाया जा सका। 9 जनवरी को जब दोनों सैटेलाइट्स के बीच की दूरी 230 मीटर थी, तो सैटेलाइट्स के भटकने (ड्रिफ्ट) के कारण मिशन को टालना पड़ा। ड्रिफ्ट यानी सैटेलाइट्स का दिशा से भटकना डॉकिंग प्रक्रिया को पूरी तरह से प्रभावित कर सकता है।
इस बार क्या दिक्कत आई?
इस बार ड्रिफ्ट यानी भटकाव को जीरो डिग्री पर बनाए रखने में इसरो के वैज्ञानिक कामयाब रहे, लेकिन एक अहम सेंसर से सिग्नल मिलने में देरी हो गई। ISRO के सूत्रों ने बताया कि डॉकिंग के लिए जरूरी प्रोक्सिमिटी एंड डॉकिंग सेंसर के बर्ताव में गड़बड़ी देखी गई। सैटेलाइट्स की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऑन बोर्ड सिस्टम्स को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि जरा सी गड़बड़ी होने पर भी सैटेलाइट्स का सेफ्टी मोड खुद ब खुद ऑन हो जाता है और सैटेलाइट्स एक दूसरे से सुरक्षित दूरी पर चले जाते हैं।
कब होगी डॉकिंग की कोशिश?
ISRO के सूत्रों के मुताबिक, आज कुछ ऐसा ही हुआ। अब प्रोक्सिमिटी एंड डॉकिंग सेंसर के बर्ताव में हुई गड़बड़ी का विस्तार से आकलन किया जा रहा है। इस खामी को दूर करने के बाद ही अब डॉकिंग की अगली कोशिश की जाएगी। ISRO के सूत्रों ने बताया कि, आज शाम को दोनों सैटेलाइट्स एक बार फिर इसरो के ग्राउंड स्टेशन के ऊपर से गुजरेंगे, तब डॉकिंग की एक कोशिश की जा सकती है, लेकिन अगर तब तक खामी का आकलन नहीं हो पाता है, तो फिर अगले अवसर का इंतजार करना पड़ेगा।
ISRO सूत्रों के मुताबिक, दो दिनों के बाद इन दोनों सैटेलाइट्स की विजिबिलिटी भारत में मौजूद ग्राउंड्स स्टेशन से नहीं मिल पाएगी। ऐसे में हमें डॉकिंग के अगले अवसर के लिए मार्च महीने तक इंतजार करना पड़ सकता है।
बता दें कि स्पेस डॉकिंग मिशन में कई चुनौतियां होती हैं, और ISRO के वैज्ञानिक इन समस्याओं का समाधान करने में पूरी मेहनत कर रहे हैं। हालाँकि, इस बार डॉकिंग सफल नहीं हो पाई, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि सही समय आने पर इसे सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकेगा।
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