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कांशीराम ने मायावती को क्यों बनाया उत्तराधिकारी?

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मायावती ने अपना पहला चुनाव साल 1984 में उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा सीट से लड़ा था। बाद में साल 1989 में वे पहली बार सांसद बनीं।

मायावती
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उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा सुप्रीमो मायावती एक बहुत बड़ा नाम हैं। मायावती देश के सबसे ज्‍यादा जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। मायावती उत्तर प्रदेश की वो महिला मुख्यमंत्री रही, जिन्होंने प्रदेश की राजनीति में अलग ही छाप छोड़ी। मायावती आज जिस मुकाम पर हैं, वह कांशीराम के मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं था।

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कांशीराम भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम है, जिन्होंने दलितों के लिए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की वकालत करने वाले बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर की विचारधारा को आगे बढ़ाया। वह सत्ता को दलित की चौखट तक लाना चाहते थे। कांशीराम अपने सपनों को साकार करने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश में वहीं का कोई दलित चेहरा चाहिए था। जो अपने दलित पहचान के प्रति राजनीतिक रूप से जागरुक और आक्रमक हो।

कांशीराम से मायावती की पहली मुलाकात

1977 में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब जहां हुआ ये थे कि एक दिन पहले दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में 21 साल की मायावती ने उस समय के स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण पर जबरदस्त हमला बोला था। कार्यक्रम में राज नारायण बार बार दलितों को “हरिजन” कह कर संबोधित कर रहे थे। यह शब्द मोहनदास गांधी का दिया हुआ है और दलित इस शब्द से बेहद नफरत करते हैं।

लेकिन अपनी बारी आने पर मायावती चिल्लाईं, “आप हमें ‘हरिजन’ कह कर अपमानित कर रहे हैं। जब मायावती के जोरदार भाषण की बात कांशीराम तक पहुंची तो वह बहुत चकित हो गए। इससे प्रभावित वो एक रात बिना सूचना दिए मायावती के घर पहुंच गए।

राजनीति में आने का दिया न्योता 

दलित नेता को अपनी चौखट पर देख मायावती के परिजन काफी खुश थे। उस समय वो आईएएस की तैयारी कर रही थीं। बातचीत के दौरान कांशीराम ने उनसे कहा कि यदि वह जातीय उत्पीड़न से लड़ना चाहती हैं तो प्रशासनिक सेवा से ज्यादा ताकत राजनीतिक सत्ता से मिलेगी। उन्होंने मायावती को इस बात के लिए मनाया कि यदि वह उनके मिशन से जुड़ जाती हैं तो उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का उनका सपना पूरा हो सकता है। 

मायावती अपनी आत्मकथा ‘बहुजन आंदोलन की राह में मेरी जीवन संघर्ष गाथा’ में लिखती हैं कि एक दिन उनके पिता उन पर चिल्ला कर चेतावनी दी कि तुम कांशीराम से मिलना बंद करो और आईएएस की तैयारी फिर से शुरू करो, तुम्हें पार्टी या घर में से किसी एक को चुनना होगा।

बेखौफ मायावती ने स्कूल टीचर की नौकरी से बचाए पैसों के साथ पिता का घर छोड़ दिया और दिल्ली के करोलबाग में बामसेफ के दफ्तर के बगल में कांशीराम के एक कमरे वाले घर में रहने लगीं।

कैराना से लड़ा पहला लोकसभा चुनाव

इसके बाद साल 1984 में मायावती को बसपा में शामिल किया गया। उन्होंने अपना पहला चुनाव साल 1984 में उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा सीट से लड़ा था। बाद में साल 1989 में वे पहली बार सांसद बनीं। इसके बाद वो पहली बार साल 1994 में राज्यसभा सांसद बनीं। इसके बाद 1995 में गठबंधन की सरकार बनाते हुए मुख्यमंत्री बनीं।

मायावती-कांशीराम संबंध की कहानी गुरु-शिष्य संबंधों के साथ ही उन संबंधों की बेड़ियों को तोड़कर शिष्या का अपने गुरु से सफल राजनीतिज्ञ बनने की कथा भी है।

जब कांशीराम अपने स्वागत कक्ष में ताकतवर और प्रभावशाली लोगों के साथ बैठकें कर रहे होते तो मायावती आंगन में दरी बिछा कर ग्रामीण इलाकों से आए दलित पुरुषों को पार्टी में शामिल कर रही होतीं थी। और यह भरोसा उस समय सही साबित हुआ, जब….

कांशीराम ने बनाया मायावती को उत्तराधिकारी

15 दिसंबर 2001 को लखनऊ में रैली को संबोधित करते हुए कांशी राम ने मायावती को उत्तराधिकारी बताया। एक सभा में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, ”मैं काफी समय से उत्तर प्रदेश में बहुत कम आ रहा हूं। लेकिन खुशी की बात है कि मेरी इस गैरहाजिरी को कुमारी मायावती ने मुझे महसूस नहीं होने दिया।” कांशीराम ने अपने किसी सगे संबंधी को अपना उत्तराधिकारी बनाने की जगह मायावती को अपना उत्तारधिकारी घोषित किया।

वंचित तबके की सियासत को वंशवाद या परिवारवाद से परे रखकर कांशीराम ने एक मिसाल पेश की। ज्योतिराव फूले, बाबा भीमराव आंबेडकर, छत्रपति शाहू की तरह दलितों को मुख्यधारा में शामिल करने के ख्वाब को कांशीराम ने आगे बढ़ाया और मायवती इसे आगे बढ़ाएंगी इस उम्मीद के साथ उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया

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