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बाहुबली अनंत सिंह से ‘छोटे सरकार’ बनने की पूरी कहानी…

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बिहार की राजनीति में अगर बाहुबलियों और डॉन का जिक्र ना हो तो वहां की राजनीति की दाल फीकी नजर आती है। बिहार की राजनीति की केंद्र में कई बाहुबलियों के नाम हमेशा से ही सुर्खियों में रहते ही है। कई ऐसे बाहुबली बिहार ने देखें जो खुद को कानून से ऊपर समझते थे। उन्हीं में से एक बाहुबली की चर्चा आज हम करेंगे… जिनके नाम मात्र से ही लोग कांपते थे। ‘छोटे सरकार’ और ‘मोकामा के डॉन’ कहे जाने वाले निर्दलीय विधायक बाहुबली अनंत सिंह।

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बाहुबली विधायक अनंत सिंह को कुछ समय पहले ही एके 47 और ग्रेनेड मामले में 10 साल की सजा सुनाई गई है। करीब 42 सालों के करियर में कई मामलों में फंसने वाले अनंत सिंह के खिलाफ कोर्ट का यह फैसला, अब सियासी करियर पर ब्रेक लगाने वाला माना जा रहा है। 

रौबदार मूंछें, काउबॉय हैट और हमेशा चश्मा पहनने के शौकीन अनंत का रसूख इतना कि कानून-व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है। कहते हैं कि मोकामा में अनंत की समानांतर सरकार चलती है। साल 1980 में मोकामा विधानसभा से कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह को चुनाव जिताने में अहम भूमिका निभाने वाले अनंत सिंह ने इसी इलेक्शन से अपनी नींव राजनीति में रख दी थी।  उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। 

अनंत सिंह पर सैकड़ों आपराधिक मामले चल रहे है। जिसमें लोक सेवक को अपने काम से रोकना,चोरी करना, अपहरण करना, हत्या, डकैती, जबरन वसूली, रेप आदि शामिल है।

9 साल की उम्र में पहली बार गए जेल अनंत सिंह

बताया जाता है कि जिस वक्त बाहुबली अनंत सिंह पहली बार जेल गए, उनकी उम्र महज 9 साल की थी। उसके बाद वे जुर्म की दुनिया में ऐसे बढ़े कि बड़े-बड़े नेता भी उनके रुबाब के आगे घुटने टेकने लगे। इसके पीछे का एक कारण ये भी था अनंत के बड़े भाई दिलीप सिंह बिहार के बाहुबली नेता थे।

साल 1985 के चुनाव में अनंत के बड़े भाई दिलीप सिंह, श्याम सुंदर सिंह के सामने खड़े हुए। अनंत सिंह ने पूरा जोर भी लगाया लेकिन जीत फिर श्याम सुंदर को मिल गई। हालांकि, अब श्याम सुंदर और सिंह परिवार के दोनों भाइयों के बीच पहले जैसी मिठास बिल्कुल नहीं रही थी। 

साल 1990 में अनंत के भाई दिलीप सिंह ने लालू यादव के जनता दल से टिकट लिया और कांग्रेस के श्याम सुंदर को हराकर विधानसभा पहुंच गए। भाई को चुनाव जिताने में भी अनंत सिंह का बड़ा योगदान रहा। साल 1995 में उनके बड़े भाई ने फिर श्याम सुंदर को हराया। दूसरी ओर, इस हार-जीत के बीच अनंत सिंह प्रसिद्ध होते जा रहे थे। हालांकि, साल 2000 में सिंह भाइयों को उस समय झटका लगा, जब मोकामा से उतरे अंडरवर्ल्ड डॉन सूरजभान ने दिलीप को हरा दिया। अनंत सिंह ने भाई को जिताने की काफी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। 

नीतीश ने थामा था हाथ

लोग बताते हैं कि कम उम्र में अनंत वैराग्य ले चुके थे। साधु बनने के लिए अयोध्या और हरिद्वार में भी घूमे, लेकिन साधुओं के जिस दल में थे, वहां विवाद हो गया। मन वैराग्य से उचटने ही लगा था कि सबसे बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या हो गई।

अनंत सिंह पर बदला लेने का भूत सवार हो गया। वे दिन-रात हत्यारे को ढूंढ़ने लगे। एक दिन मालूम हुआ कि हत्यारा नदी के पास बैठा है। अनंत सिंह ने उसे मारने के लिए तैरकर नदी पार की और ईंट-पत्थरों से कूचकर उसकी हत्या कर दी।

अजगर पालने के शौकीन अनंत सिंह की राजनैतिक कैरियर की शुरुआत  1994  नीतीश कुमार के करीब आने पर शुरू हुई थी। इसके बाद दोनों की दोस्ती तब और बढ़ गई जब नीतीश कुमार ने साल 2005 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर उन्हें मोकामा विधानसभा से उतार दिया। अनंत सिंह के खिलाफ संगीन मामले दर्ज थे, लेकिन बावजूद इसके वो मोकामा विधानसभा सीट से जीतने में कामयाब रहे।

2019 से जेल में बंद हैं

साल 2010 में भी अनंत ने जेडीयू के टिकट पर जीत हासिल की। लेकिन लगातार आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने के कारण वे नीतीश कुमार के लिए चिंता के सबब बने रहे। चुनाव से ठीक पहले अनंत सिंह को गिरफ्तार किया गया और पटना के सरकारी मकान से छापेमारी में कई अवैध सामग्री बरामद हुई। जिसके बाद 2015 में अनंत सिंह ने जदयू से इस्तीफा दे दिया।

लेकिन इसके बाद मोकामा से साल 2015 में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपनी दावेदारी ठोकी और जीत भी हासिल की।  16 अगस्त 2019 को अनंत सिंह के पैतृक गांव लदमा में आईपीएस लिपि सिंह के नेतृत्व में छापेमारी की गई थी। इस छापेमारी के दौरान राजद विधायक अनंत सिंह के घर से एके 47 राइफल, जिंदा कारतूस और हैंड ग्रेनेड बरामद हुए थे। जिसके बाद उनके खिलाफ सुनवाई करते हुए उन्‍हें 10 साल कैद की सजा सुनाई थी।

अनंत सिंह कैसे बने ‘छोटे सरकार’

अनंत सिंह भूमिहार समाज से आते हैं। मोकामा विधानसभा क्षेत्र भूमिहार बाहुल्य है। इसके अलावा इस इलाके में गरीबी अपने चरम पर है। ऐसे में अनंत सिंह की रॉबिनहुड वाली छवि यहां काम कर जाती है। छठ पर धोती बांटना, रोजगार के लिए गरीबों को तांगे देकर मदद करना और रमजान के दिनों में इफ्तार करना. ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके जरिए अनंत गरीबों के और छोटे सरकार बन गए।

गांव में अगर अनंत सिंह आए हैं और किसी ने मुखिया की शिकायत कर दी तो छोटे सरकार उसी वक्त सरेआम फटकार लगा देते हैं। यही सब वजह है कि इलाके के लोग अनंत सिंह को सपोर्ट करते थे।

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