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कैसे बीता महात्मा गांधी का 15 अगस्त 1947 के बाद का जीवन

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आजादी की लड़ाई खत्म होने के साथ ही सैकड़ों वर्षों से चली आ रही दासता के दिन पूरे हो गए। एक नए राष्ट्र का जन्म
हुआ, हालांकि वह दो टुकड़ों में बंटा हुआ था। माउंटबेटन ने महात्मा गाँधीजी की प्रशंसा करते हुए कहा, “अहिंसा के प्रतीक वे स्वतंत्र भारत के निर्माता है।

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महात्मा गाँधी ने विभाजन के लिए कभी भी अपनी सहमित नहीं दी थी, लेकिन जब विभाजन हो गया तो उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया और हिन्दू- मुस्लिम एकता के लिए वह हर संभव प्रयत्न करने लग गए। फिर भी हिंदू- मुसलमानों में तनाव बढ़ता ही गया।

देश को विनाश से बचाने के लिए जब महात्मा गांधी ने उपवास शुरू किया

विभाजन के परिणामस्वरूप सात लाख से अधिक हिन्दू, सिख और पाकिस्तान के हिस्सों में आए हिन्दू उस हिस्से में रहने वाले मुसलमानों पाकिस्तान को पलायान कर गए। इस सामूहिक देश- परिवर्तन का इतिहास में कोई सानी नहीं। इसने अनंत विपत्तियों को जन्म दिया। एक देश से दूसरे देश जाने के रास्ते में करीब पंद्रह लाख लोगों को भूख, बीमारी और कत्लेआम को झेलना पड़ा।

गांधी पंजाब जाते हुए दिल्ली रुके कि यहां के दंगों और उपद्रवों की सुलगती आग को वह बुझा सकें। यहां वह दिल्ली के हिन्दुओं का मुसलमानों के साथ अमानवीय व्यवहार देखकर चकित रह गए।

मुसलमानों के प्रति क्षमा और सहिष्णुता के उपदेशों ने बहुतेरे अतिवादी कट्टर हिन्दुओं की आंखों में महात्मा गांधीजी को गद्दार बना दिया। धर्मोंमाद में किए जा रहे उपद्रव को देखकर गांधीजी ने अपने शांति प्रयास दुगुने कर दिए। देशभर में हो रहे प्रमुख उपद्रव तो शांत हो गए, लेकिन इसके बावजूद छुट-पुट दंगे तब भी होते रहे।

महात्मा गांधी ने प्रायश्चित स्वरूप उपवास करने का निर्णय लिया कि उससे धर्मांध हिन्दू लोगों के रुख में अंतर आएगा। 13 जनवरी 1948 को उपवास शुरू हुआ। इस समाचार से सारे देश पर उदासी के बादल छा गए। लोगों को लग रहा था कि वह उपवास का दूसरा दिन भी नहीं सह सकेंगे।

78 वर्ष के वयोवृद्ध गांधी ने देश को विनाश से बचाने के लिए जब उपवास शुरू किया तो पूरे विश्व की आंखे उन पर लगी हुई थी।

जब महात्मा गांधी सभा में बम फेंका गया

18 जनवरी को शांति सभा बुलाई गई। इसमें सभी संप्रदायों के लोग शामिल थे। उन लोगों ने मुद्दे पर चर्चा की और अल्पसंख्यक मुसलमानों के प्रति आस्था और उनकी संपत्ति, जीवन की रक्षा और आपसी एकता के लिए प्रतिज्ञा लेते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। गाँधीजी को इस प्रतिज्ञा की सूचना दी गई। जिससे संतुष्ट होकर उन्होंने उपवास तोड़ दिया। गांधी जी बिड़ला हाउस के मैदान में रोज प्रार्थना सभा आयोजित करते थे।

20 जनवरी को उनकी सभा में किसी ने एक बम फेंक दिया, लेकिन गांधी की प्रार्थना सभा ऐसे चलती रही जैसे कुछ हुआ ही न हो। निशाना चूक गया था। किसी ने कहा, बापू आपके पास कल बम फटा था।

क्या सचमुच? गांधी ने कहा, शायद किसी बेचारे पागल ने फेंका होगा, लेकिन उस ओर किसी को ध्यान नहीं देना चाहिए।

30 जनवरी का वो दिन

30 जनवरी, 1948 को गांधी हमेशा की तरह सुबह साढ़े तीन बजे उठे। उन्होंने सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने शहद और नींबू के रस से बना एक पेय पिया और दोबारा सोने चले गए। जब वो दोबारा उठे तो उन्होंने ब्रजकृष्ण से अपनी मालिश करवाई और सुबह आए अख़बार पढ़े। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के भविष्य के बारे में लिखे अपने नोट में थोड़ी तब्दीली की और रोज की तरह आभा से बांग्ला भाषा सीखने की अपनी मुहिम जारी रखी।

उस दिन गांधीजी ने सरदार पटेल को बातचीत के लिए शाम 4 बजे बुलाया था। पटेल अपनी बेटी मणिबेन के साथ तय समय पर गांधीजी से मिलने के लिए पहुंच गए। गांधीजी प्रार्थना सभा के बाद भी पटेल के साथ बातचीत करना चाहते थे, इसलिए उन्हें वहीं रुकने के लिए कहा था।

रोज की तरह बिड़ला भवन में शाम 5 बजे प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाना था। इस सभा में महात्मा गांधी जब भी दिल्ली में होते तो शामिल होना नहीं भूलते थे। 30 जनवरी 1948 को भी शाम के 5 बज चुके थे। गांधीजी सरदार पटेल के साथ बैठक में व्यस्त थे। तभी अचानक सवा 5 बजे गांधीजी की नजर घड़ी पर गई और उन्हें याद आया कि प्रार्थना के लिए वक्त निकलता जा रहा है।

बैठक पूरी करके बापूजी आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए मंच की तरफ आगे बढ़ रहे थे, तभी अचानक उनके सामने नाथूराम गोडसे आ गया। गोडसे ने अपने सामने महात्मा गांधी को देखकर हाथ जोड़ लिये और कहा- ‘नमस्ते बापू!’, तभी बापूजी के साथ चल रही मनु ने कहा- भैया, सामने से हट जाओ बापू को को जाने दो, पहले से ही देर हो चुकी है।

शाम 5.17 का वक्‍त था, पहले गोडसे ने अचानक मनु को धक्‍का दे दिया और अपने हाथों में छुपा रखी छोटी बैरेटा पिस्टल गांधीजी के सामने तान दी, और देखते-ही-देखते गांधीजी के सीने पर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं। और गांधीजी वहीं पर गिर पड़े। उनके मुहं से अंतिम शब्द थे, हे राम, हे राम!

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