मिला ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ का सम्मान
81 साल की उम्र में भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई देश के महान राजनेताओं में से एक थे। जिनकी ईमानदारी, दृढ़ इच्छाशक्ति ने उन्हें आज भी लोगों के दिलों में जिंदा रखा है। 24 मार्च 1977 आजाद भारत की राजनीतिक इतिहास का वो दिन था। जब किसी गैर कांग्रेस सख्स ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। देसाई देश के पहले PM हैं जो भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ और पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ दोनों से सम्मानित हैं।
मोरारजी देसाई की एक खास अदा थी कि अगर उनसे कोई प्रशन किया जाए तो उसका उत्तर भी देसाई जी प्रश्न से शुरु करते थे।1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री में रहें मोरारजी देसाई के बारे में मशहूर था कि वो सख्त किस्म के गांधीवादी थे। और दिवानगी की हद से ज्यादा ईमानदार थे। मोरारजी देसाई आजादी के बाद अभिवाजित बांम्बे के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना राजनैतिक कैरियर की शुरुआत किया। मोरारजी देसाई 1956 में केंद्र की राजनीति में पहुंचे और नेहरू सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर शामिल किए गए।
देसाई जी का व्यक्तित्व उनके राजनैतिक सफर से नहीं आंका जा सकता था। वो समाजिक तौर पर परंपरनावादी, व्यवसायोन्मुखी और स्वतंत्र उद्यमों में सुधार के पक्षधर थे। जो नेहरू जी की सोशलिस्ट नीतियों के खिलाफ थीं। इसके बाद भी ये माना जाता था कि, उम्र की वजह से कभी नेहरू नहीं रहे तो उनकी जगह पर स्वाभिक रूप से देसाई ही प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे।
1964 में वो वक्त आ भी गया जब नेहरू नहीं रहें लेकिन तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के कामराज ने नेहरू की मृत्यु के दो घंटे के बाद ही गुलजारी लाल नंदा के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री को नेहरू समर्थकों का साथ मिला और देसाई पीछे रह गए। शास्त्री के जाने के बाद मोरारजी देसाई एक बार फिर प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहे और इस बार इंदिरागांधी से मात खा गए। लेकिन वो इस बार उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। लेकिन जल्द ही दोनों के बीच मतभेद शुरू हो गए। बता दें ये अबतक के सबसे अधिक बार आम बजट पेश करने का रिकॉर्ड बनाने वाले पहले शख्स है। इन्होंने एक वित्त मंत्री के तौर पर10 बार आम बजट पेश किया था।
कांग्रेस के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार, बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स के मुद्दे पर इंदिरा गांधी से देसाई का टकराव इस हद तक बढ़ा कि इंदिरा ने उनसे वित्त मंत्रालय ले लेने का फैसला किया। फिर 1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं और जनता पार्टी सत्ता में आई तो मोरारजी देसाई को भारत का चौथा प्रधानमंत्री बनाया गया और उस समय आचार्य कृपलानी और जयप्रकाश नारायण ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। जब एक बार देसाई पर दक्षिणपंथी यानि राइटिस्ट होने का आरोप लगा तो उन्होंने मुस्करा कर कहा था, “हाँ मैं राइटिस्ट हूँ क्योंकि आई बिलीव इन डुइंग थिंग्स राइट।”
भारत रत्न मोरारजी एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो भारत और पाकिस्तान दोनों के सम्मान से सम्मानित किए गये थे। खासकर सत्तर के दशक में जब भारत पाकिस्तान के रिश्ते बहुत खराब हो चले थे। खासकर पूर्वी पाकिस्तान के आजाद होने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। पाकिस्तान की जिया उल हक की सरकार ने मोरारजी देसाई की सरकार के साथ बेहतर संबंध स्थापित की दिशा में काम किए थे। मोरारजी देसाई ने पाकिस्तान के साथ देश के रिश्ते इतने अच्छे कर लिए थे कि एक्टिव पॉलिटिक्स से रिटायर होने के बाद 1986 में वो देश पहले PM बने जिन्हें पाकिस्तान पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान से नवाजा।
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