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प्रधानमंत्री सीरीज़: किस नेता ने तोड़ा था कांग्रेस का एकक्षत्र राज?

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संसद का बगैर एक दिन सामना किये चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था। कहते हैं कि अगर इस प्रधानमंत्री ने बोला होता संसद में, तो किसानों की कहानी कुछ और होती।

कांग्रेस का एकक्षत्र राज
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यूपी के एक ऐसे मुख्यमंत्री जो क्रिकेट को नापसंद करते थे। शराब-सिगरेट पीने वालों को पार्टी का टिकट भी नहीं देते। आम लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ते। ये राजनीतिक किस्से एक ऐसे शख्स के बारे में है जो 4 दशक तक कांग्रेस में रहे, फिर भी पहली बार यूपी में गैर कांग्रेस सरकार बनाई। चौधरी चरण सिहं उस दौर के अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने कांग्रेस का एकक्षत्र राज को तोड़ दिया था।

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सत्ता के शीर्ष तक तो पहुंचे लेकिन उनकी पहचान किसानों के मसीहा के रूप में हुई। हम बात कर रहे हैं देसी मिजाज और देसी ठाठ के लिए मशहूर चौधरी चरण सिंह की जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में हुआ था। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे।

कांग्रेस का एकक्षत्र राज का पतन

भारत के प्रधानमंत्री के कार्याकल की सूची में इनका नाम बहुत ही कम समय के लिए दर्ज है। भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह के नाम ऐसे प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड बना, जिन्हें पद पर रहते कभी संसद का सामना नहीं करना पड़ा।

भारत के राजनैतिक इतिहास में चौथे आम चुनाव ने कांग्रेस में खासी खलबली पैदा कर दी थी। यही से कांग्रेस के पतन और उसके विकल्प के तौर पर एक सशक्त लेकिन विभाजित विपक्ष के उदय की शुरूआत हुई। उत्तर प्रदेश में ये पहला चुनाव था, जब कांग्रेस पूर्ण बहुमत हासिल करने में असफल रहीं। आइऐ जानते है सन 1967 में हुए चौथे आम चुनाव से भारतीय राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत कैसे हुई।

कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती

वर्ष 1967 के आम चुनाव के पशचात चौधरी चरण सिंह और उनके 16 समर्थकों ने कांग्रेस छोड़ दी और जन कांग्रेस नामक पार्टी का स्थापना की। बाद में विपक्ष के विधायकों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल का गठन किया। जिसमें जन कांग्रेस भी सम्मिलित हुई। चौधरी चरण सिंह इस दल के नेता बने। दिनांक 3 अप्रैल, 1967 को वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। दिसंबर, 1968 में भारतीय क्रांति दल नामक एक नई पार्टी बनी। चरण सिंह इसके संस्थापक में से एक थे।

तत्पश्चात उन्होंने 1969 में उत्तर प्रदेश में हुए मध्यावधि चुनाव में भाग लिया और इसमें जीत हासिल की। फरवरी, 1970 में चरण सिंह एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने और सिंतम्बर, 1970 तक मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया और उसके बाद 1977 तक चौधरी सिंह उत्तर प्रदेश राज्य विधान सभा में विपक्ष के नेता रहे।

बने भारत के किसानों की आवाज

साल 1974 में चौधरी चरण सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास किया और भारतीय लोक दल का गठन करने में सफल हुए। चरण सिंह साल 1977 में राष्ट्रीय स्तर पर जनता पार्टी के गठन के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने ‘भारतीय लोक दल’ का जनता पार्टी में विलय कर दिया।

साल 1977 में जनता पार्टी के झंड़े तले लड़े गए आम चुनावों में पहली बार छठी लोक सभा के लिए निर्वाचित होने पर चौधरी चरण सिंह को केंद्रीय गृह मंत्री नियुक्त किया गया तथा बाद में उन्हें उप-प्रधानमंत्री बनाया गया। जनवरी, 1979 में वो वित्त मंत्री बने। 23 दिसंबर ,1978 को चौधरी चरण सिंह के 76वें जन्मदिन के अवसर पर दिल्ली में एक विशाल किसान रैली का आयोजन किया गया। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जिससे लोगों का ध्यान किसानों से जुड़े मुद्दों की ओर आकृष्ट हुआ।

जुलाई, 1979 में जनता पार्टी से चरण सिंह ने त्यागपत्र दे दिया और भारतीय क्रांति दल को लोक दल के नाम से पुनर्जीवित किया। 15 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के त्यागपत्र के बाद और काफी विचार-विमर्श के पश्चात तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. नीलम संजीव रेड्डी ने चरण सिंह को नई सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया और लोक सभा में विश्वास मत प्राप्त करने के लिए कहा। चौधरी चरण सिंह नें 28 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

कभी संसद में बोलने का मौका नहीं मिला

इसके बाद राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने निर्देश दिया था कि चरण सिंह 20 अगस्त तक लोकसभा में अपना बहुमत साबित करें। पर इस बीच इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को ही यह घोषणा कर दी कि वह चरण सिंह सरकार को संसद में बहुमत साबित करने में साथ नहीं देगी। नतीजतन चरण सिंह ने लोकसभा का सामना किए बिना ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति ने 22 अगस्त, 1979 को लोकसभा भंग करने की घोषणा कर दी। लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ और इंदिरा गांधी 14 जनवरी, 1980 को प्रधानमंत्री बन गईं।

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