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प्रधानमंत्री सीरीज: कैसे जासूसी के जाल से गिरी थी चंद्रशेखर की सरकार?

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अयोध्या मुद्दा में दोनों पक्ष सहमत हो गए। लेकिन जासूसी के जाल का बहाना बनाकर कांग्रेस ने संकट पैदा किया और चंद्रशेखर की सरकार गिर गई।

जासूसी
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युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल भले ही छोटा रहा हो लेकिन उनके काम करने का ढंग हमेशा ही याद रखा जाएगा। कहा जाता है कि वो पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने राज्य मंत्री या केंद्र में मंत्री बने बिना ही सीधे प्रधानमंत्री बने। चंद्रशेखर ने 10 नवंबर 1990 को भारत के 8वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन महज तीन महीने बीते थे की जासूसी के जाल से चंद्रशेखर की सरकार गिर गई थी।

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कांग्रेस का आरोप था कि सरकार उनके नेता राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है। अल्पमत में आने के बाद चंद्रशेखर को 6 मार्च 1991 को इस्तीफा देना पड़ा। आइए जानते है चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने की कहानी।

भाजपा ने लिया समर्थन वापस

बात 1989 की है जब जनता दल की गठबंधन सरकार बनी तो प्रधानमंत्री पद की रेस में चंद्रशेखर भी शामिल थे। वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अरुण नेहरू और देवीलाल ने मिलकर एक साजिश रची। इस साजिश की भनक चंद्रशेखर को नहीं थी,और जनता दल के विश्‍वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। लेकिन चंद्रशेखर को वीपी सिंह का इस तरह नेता चुना जाना बहुत नागवार गुज़रा। उन्होंने कहा मुझसे कहा गया था कि देवीलाल नेता चुने जाएंगे, ये धोखा है।

खैर 2 दिसंबर, 1989 को वीपी सिंह को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ देवीलाल ने उप प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।एक साल भी नहीं बीता था वीपी सिंह कि सरकार का, तभी राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे पर रथयात्रा निकाल रहे लालकृष्ण आडवाणी को बिहार में जनता दल के मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तार करवा दिया। जिससे भाजपा के लोग खासा नाराज हो गए। इसके बाद 23 अक्तूबर, 1990 को भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। आखिरकार 7 नवंबर को विश्वास मत हारने के बाद वीपी सिंह की सरकार चली गई।

वीपी सिंह के 11 महीने के शासनकाल पर उन्हीं के मंत्रिमंडल के अहम सदस्य इंदर कुमार गुजराल ने अपनी आत्मकथा ‘मैटर ऑफ़ डिसक्रेशन’ में टिप्पणी की थी, ”वीपी सिंह की टीम में बौद्धिक गहराई का अभाव था। उनकी सरकार की नीतियाँ प्रो-एक्टिव न हो कर रि-एक्टिव थीं।

लोग बताते है की वीपी सिंह की सरकार बिल्कुल उसी तरह गिरी जैसे 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिरी थी। उस समय राजनारायण और चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी से हाथ मिला लिया था और इस बार यशवंत सिन्हा, चंद्रशेखर आदि ने राजीव गांधी से हाथ मिला लिया।

राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को दिया प्रस्ताव

इसके बाद हालात ये थे कि या तो तुरंत चुनाव कराए जाएं या फिर कोई वैकल्पिक सरकार बने। चंद्रशेखर ने अपनी आत्मकथा ‘ज़िदगी का कारवाँ’ में इस बारे में लिखा है, ”एक दिन अचानक आरके धवन मेरे पास आ कर बोले कि राजीव गांधी आप से मिलना चाहते हैं। फिर जब मैं धवन के यहाँ गया तो राजीव गांधी ने मुझसे पूछा, क्या आप सरकार बनाएंगे?”

मैनें कहा, सरकार बनाने का मेरा कोई नैतिक आधार नहीं है, और न ही मेरे पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या। इस पर उन्होंने कहा कि आप सरकार बनाइए। हम आपको बाहर से समर्थन देंगे। मैंने कहा, अच्छा हो, अगर कांग्रेस के लोग भी सरकार में शामिल हो जाएं। राजीव ने आगे कहा, एक दो महीने बाद हमारे लोग सरकार में शामिल हो जाएंगे।”

राजीव गांधी के समर्थन के बाद 64 सासंदो से चंद्रशेखर ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और 10 नवंबर 1990 को भारत के 8वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन कांग्रेस के बाहरी सहयोग से बनी उनकी सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चली और उसे भी इस्तीफा देना पड़ा।

60 दिन और पीएम रह जाते तो अयोध्या मुद्दा हल हो जाता

एक जमाने में चंद्रशेखर के सूचना सलाहकार रहे हरिवंश बताते हैं, “समय मिला होता तो चंद्रशेखर देश के सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्री होते। उन्होंने चार महीने के कार्यकाल में अयोध्या विवाद, असम चुनाव, पंजाब समस्या, कश्मीर समस्या सबके समाधान की तरफ कदम बढ़ाए और बहुत हद तक उन चीजों को आगे ले गए।”

चंद्रशेखर बताते हैं, अयोध्या मुद्दा में एक ऐसी स्थिति आ गई कि दोनों पक्ष सहमत हो गए। समाधान सामने था। हाईकोर्ट के निर्णय को मानने के लिए दोनों पक्ष के लोग तैयार थे। सुप्रीम कोर्ट तीन महीने में फैसला देने के लिए तैयार था। चारों तरफ यह चर्चा शुरू हो गई कि अब निर्णय हो जाएगा। तभी जासूसी के जाल का बहाना बनाकर कांग्रेस ने संकट पैदा किया और चंद्रशेखर की सरकार गिर गई।

राजीव गांधी पर नजर रखने को हो रही थी जासूसी

उस वक्त कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि चौटाला सरकार के गृहमंत्री संपत सिंह के निर्देश पर राजीव गांधी के घर पर नजर रखी जा रही थी। कहा जाता है इस जासूसी का मकसद जनता दल के उन असंतुष्ट नेताओं पर नजर रखना था, जो राजीव गांधी से मिल रहे थे। कांग्रेस ने जब इस मामले को उछाला तो तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस पूरे मामले की जांच कराने का प्रस्ताव रखा।

कांग्रेस मांग कर रही थी या तो हरियाणा सरकार को बर्खास्त किया जाए या ओमप्रकाश चौटाला को जनता दल (एस) के महासचिव पद से हटाया जाए। कांग्रेस के विरोध के चलते चंद्रशेखर बुरी तरह घिर गए। कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापसी लेने की मांग करी, लेकिन इससे पहले कि पार्टी समर्थन वापस लेती, प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद नए सिरे से चुनाव हुए। जून 1991 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई। पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। 

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