साल 1996 में पीवी नरसिम्महा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार जाने के बाद देश की सियासत में उथल-पुथल मचा।इसके बाद देश की कमान भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों में आई। ये लगातार तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे। 1996 में पहली बार वो मात्र 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री रहे। वो दूसरी बार 1998 में प्रधानमंत्री बने मगर एक वोट से गिर गई थी अटल बिहारी 13 महीने की सरकार। तीसरी बार वो 1999 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे।
साल 1999 राजनीति जगत में काफी चौंकाने वाला रहा। यह वो साल था जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी। सरकार गिरने की घटना से जुड़ी एक बात आज भी रहस्य की तरह है, कि वो एक वोट किसका था जिसकी वजह से 13 महीने की सरकार गिर गई।
1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसने 161 सीटें जीतीं और गठबंधन सरकार बनाने का दावा किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, उनकी सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई और 13 दिन में ही गिर गई।
फिर 1998 में बीच में ही चुनाव हुए। एक बार फिर भाजपा सबसे बड़े दल और NDA सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरा। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 182 सीटें मिली और वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बीजेपी ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, एआईएडीएमके और बिजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई। अटलजी दोबारा प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका यह कार्यकाल भी बहुत लंबा नहीं रहा। 13 महीने बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
उस समय NDA की सहयोगी AIADMK की प्रमुख जयललिता ने अपने खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों को वापस लेने और DMK यानी करुणानिधी की सरकार खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी पर दबाव बनाया। लेकिन अटल जी इस दबाव के आगे नहीं झुके। क्योंकि वो जानते थे कि किसी भी चुनी हुई सरकार को अपने हित के लिए बर्खास्त करने का सियासी संदेश ठीक नहीं होगा। 6 अप्रैल को जयललिता के सभी मंत्रियों ने वाजपेयी को अपने इस्तीफे भेज दिए।
इस बीच रोल शुरू होता है सुब्रमण्यम स्वामी का जो अटल से नाराज थे। स्वामी ने दिल्ली के अशोका होटल में जयललिता और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच एक चाय मीटिंग करवाई। इसके बाद अम्मा ने वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। नतीजा यह हुआ कि संसद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत के दौरान एक वोट से हार गई।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उनके निजी सचिव शक्ति सिन्हा ने अपनी किताब ‘वाजपेयी: द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया’ में कई दावे किए हैं। कि वाजपेयी सरकार को गिराने में तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरधर गमांग जिम्मेदार थे। दिलचस्प बात ये है कि वाजपेयी सरकार गिराने वाले गिरधर गोमाँग ने बाद में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
17 अप्रैल को संसद में बहुमत साबित करने के लिए बीजेपी के नेता नंबर जुटाने की कोशिश में जुटे थे। सरकार की तरफ़ से बीजेपी साँसद रंगराजन कुमारमंगलम ने मायावती को यहाँ तक आश्वासन दे दिया कि अगर उन्होंने पहले से तय स्क्रिप्ट पर काम किया तो वो शाम तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन सकती हैं। मयावती ने कहा कि बसपा के पांचों सांसद वोटिंग के दौरान संसद में मौजूद नहीं रहेंगे।
17 अप्रैल की सुबह कांग्रेस नेता शरद पवार ने मयावती से मिलकर बीजेपी की रणनीति का पासा पलट दिया। जब वोट देने का समय आया तो मायावती अपने साँसदों की तरफ देख कर ज़ोर से चिल्लाईं लाल बटन दबाओ। वाजपेई सरकार के पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 मत पड़े थे। महज एक वोट से अटल बिहारी वाजपेई की 13 महीने पुरानी सरकार गिर गई थी।
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