यूपी की सियासत में दागदार नेताओं की कमी नहीं है। हमेशा से ही यहां बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है। अपने रसूख के दम पर ये ‘माननीय’ चुनावी बयार का रुख अपनी तरफ मोड़ने में माहिर होते हैं। लेकिन एक नेता ने राजनीति से इतर कुछ ऐसा किया कि अर्श से सीधा फर्श पर आ गिरा। यूपी के इस बड़े नेता का नाम था अमरमणि त्रिपाठी।
पूर्वांचल के ‘डॉन’ कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी के राजनीतिक वारिस रहे अमरमणि का जलवा कुछ ऐसा था कि सरकार चाहे भाजपा की रही हो या सपा-बसपा की, वे हर कैबिनेट का जरूरी हिस्सा हुआ करते थे।
अमरमणि त्रिपाठी महाराजगंज के नौतनवा से विधायक थे और लगातार चार बार वो विधायक रहे। दो बार यूपी के पूर्व मंत्री भी रह चुके है। एक बीजेपी की सरकार में तो दूसरी बार मायावती की सरकार में। यहीं नहीं अमरमणि 2007 में जेल में रहकर चुनाव लड़े और जीत भी गए थे।
अमरमणि जो राजनीति में कदम रखने से पहले छोटे मोटे अपराध को अंजाम देता था… लेकिन राजनीति की पावर मिलते ही उसने ऐसा कांड किये कि पूरे यूपी की सियासत में बवंडर आ गया। एक कवियत्री के प्यार में बाहुबली अमरमणि ऐसे फंसा कि अब ये सलाखों के पीछे है। इस शख्स की कहानी में ल से लव… स से सेक्स… और ध से धोखा सब कुछ है।
वैसे तो अमरमणि त्रिपाठी का अपराध की दुनिया से हमेशा नाता रहा, लेकिन 19 साल पहले एक ऐसी बड़ी घटना हो गई थी जिसने इस बाहुबली का पूरा राजनीतिक करियर चौपट कर दिया। दरअसल 9 मई, 2003 को राजधानी लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में मधुमिता शुक्ला की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।
मधुमिता उन दिनों वीर रस की ओजपूर्ण कवियत्री हुआ करती थीं। लखीमपुर खीरी जिले की रहने वालीं मधुमिता 16-17 साल में चर्चित हो गई थीं। अपने तेज तर्रार अंदाज के लिए मशहूर मधुमिता देश के प्रधानमंत्री समेत कई बड़े नेताओं को अपने निशाने पर रखती थीं। अब यहां उसकी जिंदगी में अमरमणि त्रिपाठी की एंट्री होती है। दोनों में नजदीकियां बढ़ीं और शादीशुदा अमरमणि, मधुमिता पर दिल हार बैठे।
लेकिन साल 2003 में 9 मई के अखबार मधुमिता के मौत की खबरों से पट गए। खबर थी कि लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में रहने वाली मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जांच आगे बढ़ी तो मधुमिता के नौकर देशराज ने बताया कि घटना के दिन अमरमणि के दो आदमी घर आए थे। देशराज चाय बनाने लगा। तभी गोली चलने की आवाज़ आई. नौकर कमरे में पहुंचा तो देखा दोनों लोग गायब थे और बिस्तर पर मधुमिता की लाश पड़ी थी।
उस दौरान के वक्त अमरमणि बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। जिसके बाद ये मामला यूपी से सीबीआई के पास जाता है और फिर पोस्टमॉरर्टम रिपोर्ट सामने आई तो पता चला कि मधुमिता गर्भवती थी। लेकिन डीएनए रिपोर्ट ने तो जैसे बवंडर ला दिया। डीएनए जांच में बच्चे के पिता की पहचान अमरमणि त्रिपाठी के रूप में हुई।
मधुमिता की मौत के बाद उनके कमरे से एक पत्र मिला जो उन्होंने 2002 में लिखा था। उसमें उन्होंने लिखा था, 4 महीने से मैं मां बनने का सपना देखती रही हूं, तुम इस बच्चे को स्वीकार करने से मना कर सकते हो पर मैं नहीं, क्या में महीनों इसे अपनी कोख में रखकर हत्या कर दूं? तुमने सिर्फ मुझे उपभोग की वस्तु समझा है।’
दरअसल विपक्षी नेताओं की शिकायत थी कि अमरमणि अपने रसूख के चलते जांच प्रभावित कर रहे थे। सीबीआई ने अपनी जांच पूरी की और जब चार्जशीट दाखिल किया तो उसमें अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि, भतीजा रोहित चतुर्वेदी समेत दो शूटरों संतोष राय और प्रकाश पांडेय को आरोपी बनाया। देहरादून फास्टट्रैक ने तेजी से इस मामले को निपटाया और प्रकाश पांडे को छोड़कर सभी लोगों को दोषी करार दिया।
सबको उम्रकैद की सजा सुनाई गई जबकि प्रकाश पांडे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। बाद में मामला नैनीताल हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने 2007 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार तो रखा ही, प्रकाश पांडे को भी उम्रकैद की सजा सुनाई।
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