हिजाब पर पाबंदी- क्या ये है भाजपा सरकार का नया हथकंडा या जरूरत ?
कर्नाटक में बसवराज बोम्मई की सरकार हरेक फ्रंट पर फिसड्डी साबित हो रही है. कोविड -19 महामारी से निबटने में बिल्कुल नाकाम रही. सूबे में बेरोजगारों की फौज खड़ी हो रही है. राज्य की अर्थव्यवस्था चरमरा सी गई है . ऐसे में संकट के दलदल में फंसी बोम्मई सरकार की पहली प्राथमिकता ये है कि वो जनता का ध्यान इन मूलभूत मुद्दों से हटाए. और इसके लिए उसे किसी सांप्रदायिक मुद्दे की तलाश थी जो राज्य में हंगामा खड़ा कर सके.
उत्तर प्रदेश के चुनाव में बार-बार हिन्दु मुस्लिम ( 80:20 ), जिन्ना, पाकिस्तान जैसे मुद्दे उठाने के बावजूद भी भाजपा को कोई बहुत ज्यादा फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा. फिलहाल, उत्तर प्रदेश के मतदाता रोजगार और दूसरी बुनियादी जरूरतों के इर्द – गिर्द ही सरकार से सवाल कर रही है. बीते चुनावों में लव -जिहाद का हौवा खड़ा कर वोटों के ध्रुवीकरण में काफी हद तक भाजपा कामयाब रही थी. लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं.
कर्नाटक के हिजाब की आंच क्या पहुंचेगी उत्तर प्रदेश
बहरहाल , सवाल ये है कि कर्नाटक में हिजाब की आँच क्या उत्तर प्रदेश तक पहुँचाने की कोशिश की जा रही है. भाजपा किस हद तक अपने इस हथकंडे को कामयाबी के मुकाम तक पहुँचाती है ये तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो पाएगा . बहरहाल , कर्नाटक में जो हालात हैं उसके आधार पर ये कहा जा सकता है कि सरकार काफी सुनियोजित तरीके से हिजाब के मुद्दे को आगे बढ़ा रही है. मुस्लिम महिलाओं को अपनी पसंद का हिजाब पहनने का मौलिक अधिकार है. और उनके इस मौलिक हक के खिलाफ हिन्दुओं को लामबंद करने की कोशिश की जा रही है.
क्यों अचानक उडुपी कॉलेज के प्रिंसिपल को लगा कॉलेज में होना चाहिए युनिफॉर्म सिविल कोड
अचानक एक दिन उडुपी कॉलेज के प्रिंसिपल को लगा कि कॉलेजों में युनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना चाहिए. जाहिर है कि प्रिसिपल साहेब अपने दम पर ये कदम कतई भी नहीं उठा सकते हैं. उनके साथ भाजपा की सरकार है. तभी तो उनके फैसले के समर्थन में राज्य के गृह मंत्री और शिक्षा मंत्री तत्काल कूद पड़े. भाजपा और सरकार को भी सहूलियत हुई कि उन्हें प्रिंसिपल साहेब के कंधे पर से गोली चलाने का मौका मिल गया. सरकार ने प्रिंसिपल की तरफदारी ये कहते हुए किया कि हिजाब पहनना अनुशासनहीनता के दायरे में आता है. सरकार ने एक कमिटी का भी गठन कर लिया है जो शैक्षणिक संस्थानों में सख्त युनिफार्म कोड स्थापित करने के मुद्दे पर काम करेगी.
भाजपा को मिल रहा है हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौका
निस्संदेह भाजपा को अपने हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौका मिल गया है. आज देखा गया है कि अन्य कॉलेज भी उडुपी के इस साप्रंदायिक एजेंडे के साथ हो रहे हैं.
हिजाब विवाद का सांप्रदायिक पहलू तो हो सकता है लेकिन न्यायपालिका ने पहले ही इसपर अपने राय साफ तौर पर रखे हैं. साल 2016 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने हिजाब पहनने वाले उम्मीदवारों को प्रवेश परीक्षा में शामिल होने से मना किया था . लेकिन तब केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि छात्र हिजाब पहनकर परीक्षा दे सकते हैं क्योंकि यह उम्मीदवारों की धार्मिक आस्था का एक अनिवार्य हिस्सा है.
क्या मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना करता है किसी मजहब का अनादर
इतना ही नहीं, भारतीय संविधान सभी को अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने की इजाजत देता है. और हरेक नागरिक अपनी इस आज़ादी का पालन तभी तक कर सकता है जब तक कि वह अन्य व्यक्तियों के धर्म में हस्तक्षेप या दूसरे के धर्म का अनादर न करे . इसमें कोई दो मत नहीं कि मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने से न तो किसी घर्म की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप होता और न ही किसी और मजहब का अनादर.
बहरहाल , सवाल ये है कि आखिर हिजाब से परेशानी क्या है ? क्या सिख समुदाय के भाईयों को भी पगड़ी पहनने से रोका जाएगा ये कहते हुए कि वो भी समान युनिफार्म के अनुशासन का पालन नहीं करते हैं. क्या ब्राह्मण युवकों को चोटी नहीं रखने के लिए कहा जाएगा या फिर हिन्दु लड़कियों को बिन्दी, मंगलसूत्र या चूड़ी पहनने से रोका जाएगा.
बहरहाल, हिजाब मुस्लिम महिलाओं के लिए अपने धर्म के प्रति आस्था और सम्मान का प्रतीक है. उनके लिए यह केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं है बल्कि मर्यादा का एक प्रतीक है . हिजाब मुसलमानों की पहचान में से एक है और उन्हें इस पहचान को बनाए रखना चाहिए. उनकी इस ख्वाईश को महज अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए किसी भी सूरत में रौंदना नहीं चाहिए.
Written By: Pankaj Chowdhary