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Ram Navami Vrat Katha: राम नवमी व्रत कथा, पूजा के दौरान जरूर करें इसका पाठ

Ram Navami Vrat Katha
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Ram Navami Vrat Katha: आज रविवार 10 अप्रैल को रामनवमी धूमधाम से मनाई जा रही है। राम नवमी का पावन पर्व चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम की पूजा करने से वे भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों के अनुसार रामनवमी के दिन भक्तों द्वारा व्रत रखा जाता है और पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। पूजा के दौरान Ram Navami Vrat Katha का पाठ करना भी बेहद जरुरी होता है।

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राम नवमी व्रत कथा (Ram Navami Vrat Katha): —

बता दें कि राम नवमी के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या आते हैं और सुबह-सुबह सरयू नदी में नहाकर भगवान के मंदिर में जाकर भगवान राम की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन जगह-जगह रामायण का पाठ होता है। कई जगह श्री राम, सीता, लक्ष्मण और भक्त हनुमान की रथयात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।

गौ, भूमि, वस्त्र आदि का देना चाहिए दान

साथ ही नारद पुराण के अनुसार इस दिन भक्तों को व्रत रखना चाहिए। श्री राम जी की पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और गौ, भूमि, वस्त्र आदि का दान देना चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीराम की पूजा संपन्न करनी चाहिए।

घी और खीर से 108 आहुतियों से करें हवन

नवमी के दिन सुबह नहाकर शुद्ध हो उसके बाद पूजा गृह में सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जायें। चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछाकर, उस पर श्रीरामचंद्रजी की दो भुजाओं वाली की मूर्ति स्थापित करें। उसके बाद विधिपूर्वक पूजा करें। श्रीराम की कथा सुने। पूरे दिन उपवास रखें। रात्रि जागरण करें। दूसरे दिन प्रात:काल उठकर और स्नानादि से शुद्ध होकर प्रतिमा की पुन: पूजा करें। घी और खीर से 108 आहुतियों से हवन करें। हवन के बाद मूर्ति को ब्राह्मण को दान में दे और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा भी दें। उसके बाद आप व्रत खोलकर आप भी भोजन कर सकते है।

पूजा के दौरान जरूर करें इसका पाठ | Ram Navami Katha

एक समय की बात है जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास पर थे। वन में चलते-चलते भगवान राम ने थोड़ा विश्राम करने का विचार किया। वहीं पास में एक बुढिया रहती थी, भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता (Ram Navami Vrat Katha) उसके पास पंहुच गये। वह उस समय सूत कात रही थी, उसने उनकी आवभगत की और उन्हें स्नान ध्यान करवा भोजन करने का आग्रह किया। इस पर भगवान राम ने कहा माई मेरा हंस भी भूखा है पहले इसके लिये मोती ला दो ताकि फिर मैं भी भोजन कर सकूं।

बुढ़िया ने वो मोती हंस को खिला दिया

बुढ़िया मुश्किल में पड़ गई लेकिन घर आये मेहमानों का निरादर भी नहीं कर सकती थी। वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और उनसे उधार में Moti देने की कही राजा को मालूम था कि बुढिया की हैसियत नहीं है लौटाने की लेकिन फिर भी उसने तरस खाकर बुढिया को मोती दे दिया। अब बुढ़िया ने वो मोती हंस को खिला दिया जिसके बाद भगवान श्री राम ने भी भोजन किया।

Moti गिरते पड़ोसी उठाकर ले जाते

उसके बाद जाते जाते श्री राम बुढिया के आंगन में मोतियों का एक पेड़ लगा गये। कुछ समय बाद पेड़ बड़ा हुआ मोती लगने लगे उसको इसकी सुध नहीं थी। जो भी Moti गिरते पड़ोसी उठाकर ले जाते। एक दिन बुढिया पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी की पेड़ से मोती गिरने लगे बुढ़िया उन्हें समेटकर राजा के पास ले गई।

जब राजा ने वह पेड़ ही अपने आंगन में मंगवा लिया

राजा हैरान कि बुढ़िया के पास इतने Moti कहां से आये उसने बता दिया की उसके आंगन में पेड़ है अब राजा ने वह पेड़ ही अपने आंगन में मंगवा लिया लेकिन भगवान की माया अब पेड़ पर कांटे उगने लगे एक दिन एक कांटा रानी के पैर में चुभा तो पीड़ी व पेड़ दोनों राजा से सहन न हो सके उसने तुरंत पेड़ को उसके आंगन में ही लगवा दिया और पेड़ पर प्रभु की लीला से फिर से Moti लगने लगे जिन्हें वह प्रभु के प्रसाद रुप में बांटने लगी।

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