कल भारत बंद, BSP देगी दलित संगठनों के आंदोलन को धार, वापस मिलेगा खोया हुआ जनाधार?
BSP Support Protest : पिछले दस सालों में यूपी की सत्ता की जंग में हाशिए पर खिसकी बीएसपी एक बार फिर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की तैयारी में हैं. इस बार फिर BSP उसी समाज के मुद्दे को लेकर सड़कों पर नजर आएगी, जिस समाज को उसका सबसे मजबूत जनाधार माना जाता रहा है. देखना यह होगा कि बीएसपी इस सड़क के रास्ते सत्ता की राह दोबारा पकड़ने में कामयाब होगी या नहीं. बता दें कि BSP ने आरक्षण मुद्दे पर दलित संगठनों द्वारा किए गए भारत बंद के आह्वान को समर्थन दिया है.
दलित संगठनों ने फैसले पर जताई है नाराजगी
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार राज्यों को दे दिया है. साथ ही एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू करने का भी जोर दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के दलित संगठनों में नाराजगी है. उन्होंने इसी के चलते 21 अगस्त यानि कल भारत बंद का आह्वान किया है. बसपा प्रमुख मायावती ने भी दलित संगठनों का समर्थन करते हुए कहा कि बसपा इस आंदोलन में शामिल रहेगी.
35 साल बाद सड़कों पर उतरेंगे BSP कार्यकर्ता
35 साल बाद ये फिर देखने को मिलेगा BSP कार्यकर्ता किसी मुद्दे को लेकर लामबंद होकर सड़कों पर उतरेंगे. ऐसे में कभी दलित वोटर्स के दिल में राज करने वाली BSP एक बार फिर अपना खोए वोट बैंक को यह भरोसा दिलाने का भरसक प्रयास करेगी कि BSP ही उनकी पुरजोर आवाज है. राजनीतिक विशेषज्ञ भी BSP के इस फैसले को पार्टी के भविष्य के लिहाज से टर्निंग प्वाइंट मान रहे हैं.
बसपा के इस फैसले के समर्थन में आकाश आनंद ने ट्वीट किया कि आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ SC/ST समाज में काफी गुस्सा है। फैसले के विरोध में हमारे समाज ने 21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया है। हमारा समाज शांतिप्रिय समाज है। हम सबका सहयोग करते हैं। सबके सुख-दुख में हमारा समाज शामिल होता है। लेकिन आज हमारी आजादी पर हमला किया जा रहा है। 21 अगस्त को इसका शांतिपूर्ण तरीक़े से करारा जवाब देना है।
आकाश आनंद के ट्वीट में क्या है खास
कभी दलित और ब्राह्मणों की राजनीति करने वाली BSP ने इस आंदोलन को समर्थन देकर अपनी खोई हुई सियासी जमीन फिर से पाने की कोशिश की है. वहीं आकाश आनंद के ट्वीट में ‘हमारा समाज’ यह दो शब्द साफ इंगित करते हैं कि बीएसपी अब अपने पुराने तरीके से राजनीति करने को तैयार है.
अलग रहा है बीएसपी की राजनीति का फंडा
आमतौर पर देखा जाए तो बसपा का राजनीति करने का स्टाइल अन्य पार्टियों से काफी अलग रहा है. वह न तो मीडिया पर ज्यादा ध्यान देती है और न ही सड़कों पर उतरकर राजनीति करती है. बसपा का सत्ता तक पहुंचने का फंडा अपने हर कार्यकर्ता और पार्टी समर्थक को अंदर ही अंदर पार्टी की नीति-रीति की जानकारी देकर पार्टी पक्ष में करना रहा है. बसपा ने इसी फंडे के जरिए यूपी के सत्ता के शिखर को भी हुआ है. मायवती खुद चार बार सीएम रह चुकी हैं. लेकिन बीते वर्षों की हार के बाद बीएसपी की रणनीति अब पहली बार यह अहम बदलाव देखने को मिला है कि वो अपने जनाधार को मजबूत करने के लिए उनके साथ सड़कों पर उतरेगी.
बीएसपी के लिए साबित हो सकता है टर्निंग प्वाइंट
बता दें कि यूपी में तकरीबन 21 फीसदी दलित वोट है. वहीं इस वोट बैंक पर BSP की अच्छी पकड़ रही है. लेकिन बीते दिनों में बसपा का वोट बैंक खिसकता चला गया. 2019 के चुनावों में BSP का वोट शेयर 19.43 प्रतिशत रहा तो वहीं 2024 में यह खिसक कर महज 9.39 पर आ गया. ऐसे में यह साफ हो गया कि अब सिर्फ नॉन जाटव ही नहीं जाटव वोट भी BSP के पाले से सरकने लगा है.
यह सियासी नुकसान BSP की राजनीति की दृष्टि से काफी बड़ा है. ऐसे में अब बीएसपी को एक बार फिर अपनी सियासी जमीन पाने का मौका मिला है. अगर इस बार बीएसपी इसमें सफल रहती है तो वो यूपी में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ा उलटफेर करने में कामयाब हो सकेगी.
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