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स्वर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेश्कर की संगीत साधना

भारत रत्न लता मंगेश्कर

भारत रत्न लता मंगेश्कर

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डॉ. दिलीप अग्निहोत्री। एकबार किसी कार्यक्रम में लता मंगेशकर और अटल बिहारी वाजपेयी उपस्थित थे। लता मंगेशकर गायन और अटल बिहारी वाजपेयी अपने भाषण के लिए प्रसिद्ध थे। लता मंगेशकर ने अपने संबोधन में अटल जी की भाषण शैली को विलक्षण बताया था।

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इसके बाद अटल जी को बोलना था। उन्होंने अपने अंदाज में लता जी का सम्मान किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि लता जी स्वर साम्राज्ञी हैं। जबकि मैं सस्वर और श्वसुर नहीं बन सका। उनका कहना था कि लता जैसा स्वर तो किसी का हो नहीं सकता, मैं तो भाषण दे सकता हूँ। अच्छा स्वर उनके पास नहीं है इसलिए सस्वर नहीं है।

इसकी तुकबंदी में अटल जी ने श्वसुर शब्द का प्रयोग किया था। वह अविवाहित थे। इसलिए कहा कि श्वसुर बन नहीं सकते, सस्वर अर्थात अच्छा स्वर भगवान ने दिया नहीं। जबकि लता मंगेशकर को तो माता सरस्वती का वरद हस्त प्राप्त है। अटल बिहारी वाजपेयी विनोदपूर्ण ढंग से अपनी बात कही थी। किंतु इसमें पूरी वैचारिक गंभीरता थी। सच्चाई थी। ईश्वर प्रदत्त अपनी आवाज को लता मंगेशकर ने कठिन साधना से निखारा था।

लता का जन्म मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। पहले उनका नाम हेमा था। नाटक का एक किरदार लतिका ऐसा पसंद आया कि इनका नाम लता हो गया। वह चार बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी थीं। जब वह तेरह साल की थी, तब उनके पिता का निधन हो गया। जिसके बाद परिवार की ज़िम्मेदारी लता के ऊपर आ गई। लता ने संगीत और अभिनय की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ली थी। उनके साथ उनकी बहनें आशा भोंशले, उषा और मीना भी संगीत सीखा करती थीं।

पिता के आकस्मिक निधन के बाद लता ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली और छोटी उम्र में ही अपने करियर की शुरुआत की। साल 1942 में लता को एक मराठी फिल्म के लिए गाने का मौका मिला। लेकिन फिल्म रिलीज होने से पहले ही किसी कारणवश फिल्म से गाना हटा दिया गया था। उन्होंने इस असफलता को अवसर में बदला।

इसके बाद उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म पाहिली मंगलागौर थी। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें- मांझे बाल, चिमुकला संसार गजभाऊ, बड़ी माँ, जीवन यात्रा, माँद, छत्रपति शिवाजी शामिल थी। बड़ी माँ में लता के साथ उस समय की प्रसिद्ध गायक व अभिनेत्री नूरजहाँ थीं।

1945 में लता जी सपरिवार मुंबई आ गयी। यहां उन्होंने उस्ताद अमानत अली खान से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इस दौरान हिंदी फिल्म- आपकी सेवा में व पा लागूं कर जोरी में गीत गाया। इस गाने से प्रभावित होकर म्यूज़िक कंपोज़र गुलाम हैदर ने उन्हें एक बड़ा ब्रेक दिया। फिल्म मजबूर में उन्होंने दिल मेरा तोड़ा मुझे कहीं का न छोड़ा गाना गाया। 1949 उनकी संगीत यात्रा में यह मील का पत्थर साबित हुआ। फ़िल्म महल के गाने आएगा आने वाला से उन्हें जबरदस्त प्रसिद्धि मिली। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

एक हजार से भी ज्यादा हिंदी फिल्मों और करीब पैंतीस भाषाओं में तीस हजार से अधिक गाने गाए हैं। लता मंगेशकर ने फिल्मों में गाना गाने के अलावा कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया है, जिसमें साल 1953 में आई मराठी फिल्म ‘वादाई’, साल 1953 में ही आई हिंदी फिल्म झिंझर, साल 1955 में आई फिल्म कंचन और साल 1990 में आई फिल्म लेकिन आदि शामिल हैं।

लता मंगेशकर को फिल्मों में उनके द्वारा दिए गए अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लता मंगेशकर को साल 1969 में पद्म भूषण पुरस्कार, साल 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार, साल 1999 में पद्म विभूषण और साल 2001 में ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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