
Banda Bulldozer Action : उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बीजेपी विधायक प्रकाश द्विवेदी और SDM रजत वर्मा के बीच तीखी टकराव हुई है. जिसके चलते प्रदेश की राजनीति गर्म हो गई है. मामला बबेरू तहसील की सहकारी समिति की ज़मीन पर बने मकानों का है. जो बुलडोजर से गिराए जा रहे हैं. इस मामले में पीड़ित ब्राह्मण परिवारों ने दावा किया कि उन्हें बिना नोटिस दिए बेदखल कर दिया गया है. उस परिवार की शिकायत के तुरंत बाद BJP विधायक मौके पर पहुंचे और वहीं से SDM को कड़ी फटकार लगाते हुए चेतावनी दे डाली. विधायक ने कहा, “सुधर जाओ, नहीं तो मैं तहसील आकर सुधार दूंगा” उनका इतना कहना था कि इस मामले का पूरा वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. साथ ही #BandaBulldozerhindikhabar ट्रेंड करने लगा.
SDM ने उठाया जातिगत भेदभाव का मुद्दा
दरअसल इस मामले में SDM रजत वर्मा ने मीडिया को दी जानकारी में कहा, “मैं केवल शांति व्यवस्था के लिए मजिस्ट्रेट और पुलिस बल देने पहुंचा था. बुलडोजर चलाने का आदेश सहकारी समिति का था. शायद मेरी OBC जाति होने की वजह से विधायक ने ऐसा व्यवहार किया.” अधिकारियों की चुप्पी ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या प्रशासन जाति के आधार पर दबाव में है.
बुलडोजर एक्शन: किसकी जिम्मेदारी?
- सहकारी समिति का दावा: कब्जा अवैध था, इसलिए ढहाया गया.
- पीड़ित पक्ष का आरोप: बिना नोटिस, अचानक तोड़फोड़ की गई.
- प्रशासनिक भूमिका: SDM ने मजिस्ट्रेट और पुलिस तैनात कर ‘अमन’ बनाए रखा.
विधायक की दलील
वहीं दूसरी और प्रकाश द्विवेदी का कहना है कि नियमों के तहत नोटिस, सुनवाई और फिर ही ध्वस्तीकरण होना चाहिए. फोन पर उन्होंने SDM को धमकी भरे लहज़े में कहा, “मैं कानून आपसे बेहतर जानता हूं, अगर तुमने दोबारा अपनी मनमानी की तो नौकरी करना सिखा दूंगा.” उन्होंने जिले के DM पर भी नाराजगी जताते हुए कहा कि “जो अफसर बताते हैं, वही कर देते हो!”
विधायक की चेतावनी: “नहीं सुधरे तो आकर ठीक कर दूंगा”
इतना ही नहीं विधायक प्रकाश द्विवेदी ने फोन पर SDM रजत वर्मा से कड़े शब्दों में कहा, “आप एक जिम्मेदार अधिकारी हैं, आपको नियम-कानून पूरी जानकारी होनी चाहिए. किसी के घर पर बुलडोजर चलवाना वो भी बिना नोटिस दिए गलत है. अगर आप किसी खास मकसद से बबेरू आए हैं, तो अपनी आदतें सुधार लें. मैं अनुरोध कर रहा हूं, बवाजूद इसके अगर तुमने अपनी मनमानी की तो मै खुद आकर तुम्हे ठीक कर दूंगा. ये मेरा वादा है. जिसे बताना हो, बता देना. जरूरत पड़ी तो आपको नौकरी करना भी सिखा देंगे, ये बात लिखकर रख लो.”
उन्होंने आगे कहा, “महज दो महीनों में अपने तहसील के आम लोगों की जिंदगी मुश्किल बना दी है. आप अपने काम करने का तरीका बदलो. मैं कानून आपसे बेहतर जानता हूं. मुझे लगता है कि जितने भी बेकार अफसर हैं सरकार ने उन्हें बांदा भेज दिया है. अगर आप नहीं सुधरे, तो आपके खिलाफ शासन में शिकायत करूंगा.
जानें क्या हैं राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- समाजवादी पार्टी ने इस घटना को “सत्ता की दबंगई” करार दिया है.
- बीजेपी के भीतर फिलहाल मौन, लेकिन अंदरूनी असहजता साफ है.
- सोशल मीडिया के माध्यम से लोग सवाल कर रहे हैं कि “कानून का राज या बुलडोजर राज?”
क्यों यह मुद्दा अहम है?
- कानूनी प्रक्रिया: नोटिस न देने का आरोप स्थानीय प्रशासन की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है.
- जाति और सत्ता: SDM का भेदभाव का आरोप है कि क्या वाकई जाति के आधार पर अफसरों पर दबाव दिया गया है?
- लोकतांत्रिक मर्यादा: चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा सरकारी अफसर को खुलेआम धमकाना क्या विधायी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं है?
गौरतलब है कि बांदा का यह विवाद अब सिर्फ बुलडोजर की कार्रवाई नहीं, बल्कि कानून के दायरे, प्रशासनिक निष्पक्षता और राजनीतिक भाषा की और बहस छेड़ता है. जिसको देखते हुए साफ कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा अदालत से लेकर विधानसभा तक गूंज सकता है. अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार पीड़ितों को इंसाफ दिला पाएगी या यह मामला भी सिर्फ बयानबाजी तक सिमट कर रह जाएगा?
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